जब दीपों से जगमग
हो रहा था अपना घर -आँगन
जब आतिशबाजी से गूँज रहा था
क्या धरती और क्या गगन
जब मुस्कराहट थी हमारे चेहरों पर
उल्लास द्विगुणित तन मन में
द्वारे द्वारे दीप जले जब
लक्ष्मी पूजन ,अर्चन, वंदन में
तब कोई था जो डटा हुआ था
घर से बहुत दूर खड़ा हुआ था
सीना ताने अड़ा हुआ था
सीमा पर वो बिछा हुआ था
ओ! भारत के वीर सिपाही
धन्यवाद और तुम को नमन
और कुछ मैं कर नहीं सकता
बस स्वीकार करो ये अभिनन्दन!
(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)