25 December 2013

सेंटा हमें बताओ ना .....

सभी स्नेही पाठकों को क्रिस्मस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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मचल रही बच्चों की टोली
क्या लाए हो भर के झोली
सेंटा हमें बताओ ना
खुशियाँ यहाँ बिखराओ ना

परी लोक सी चमकी  धरती
महकी धरती चहकी धरती 
और सुंदर इसे बनाओ ना
हरियाली सजाओ  ना

हम सच्चे हैं,छोटे बच्चे हैं
काले-गोरे हम ही अच्छे हैं
हम को  कुछ समझाओ ना
रंगभेद को मिटाओ ना

क्रिस्मस का दिन है, बड़ा दिन है
तुम्हारा बहुत ही बड़ा दिल है
तुम भी नाचो गाओ ना
हम में घुल मिल जाओ ना

हर बोली में दुनिया बोली 
क्या लाए हो भर के झोली
सितारे ज़मीं पे लाओ ना
सेंटा हमें बताओ ना

~यशवन्त यश©

इस रचना के लिये फेसबुक पर बाल उपवन ग्रुप की ओर से प्रदत्त प्रमाण पत्र -



02/01/2014

20 December 2013

सन्नाटे को तोड़ना है

आओ चलें कि, सर्द हवाओं का रुख मोड़ना है
आज नहीं तो कल, इस सन्नाटे को तोड़ना है

यह वक़्त खामोशी का नहीं,मूंह खोलने का है
जो कुछ दबा छुपा मन में, सब बोलने का है

कुबूल सच तो था पहले भी, इन्कार कब है
झूठ की हवेली में अदालत की, दरकार कब है

सब काबिल हैं यहाँ , माहिर अपने फन के
महफिल में सजे हुए, मोम के पुतले बन के

लहरों का ले हथोड़ा, पत्थर दिल पर वार कर
बनेगा नया इक रस्ता, हर कल को संवार कर

आओ चलें कि, इस कुहासे को झकझोरना है
अपनी कदमताल से, हर सन्नाटे को तोड़ना है ।

~यशवन्त यश©

15 December 2013

किसी के गम किसी से कम नहीं हैं

दूर जाने के अभी ये मौसम नहीं हैं
किसी के गम किसी से कम नहीं हैं

कोई चलता है धीरे कोई भाग रहा है 
उलझता है कोई सुलझता जा रहा है 

ये डोर है कैसी इसका साहिल कहाँ है 
कब्र में जी उठे कोई इस काबिल कहाँ है 

बेमौसम जिंदगी की कटती पतंग यहीं है
तस्वीरें बदलती जातीं कोई एक रंग नहीं है

मुसाफिर सफर अकेले रास्ता अनजाना है 
हमसफर न कोई यहाँ जाना पहचाना है

यह बात और है कि कोई समझता नहीं है
मन में रख कर सवाल कोई पूछता नहीं है

चौराहे कई कहीं पर मन का भरम नहीं है
रिश्ता न कोई फरिश्ता आप और हम नहीं है

दूर जाने के अभी ये मौसम नहीं हैं 
किसी के गम किसी से कम नहीं हैं  ।

~यशवन्त यश©

(भावना जी की टिप्पणी के बाद इसे थोड़ा सा बढ़ा दिया है) 

 

10 December 2013

सबसे सस्ता हर इन्सान

सब कुछ महंगा है यहाँ
रोटी कपड़ा और
मकान
सब कुछ सपना है यहाँ
हर कोई परेशान और
हैरान
फिर भी जीना है यहाँ
जी लगे
न लगे
चूल्हा जलना है यहाँ
भूख लगे
न लगे
कोई तमन्ना नहीं यहाँ
हर ओर शमशान और
कब्रिस्तान
साँसों का मोल न यहाँ
सबसे सस्ता
हर इन्सान।

~यशवन्त यश©

07 December 2013

नन्हें मुन्ने प्यारे बच्चे इस बगिया के फूल हैं

 यह वर्ष 2013 की 200 वीं पोस्ट है (इसे फेसबुक पर सुनीता जी के ईवेंट हेतु कुछ दिन पहले लिखा था।)


नन्हें मुन्ने प्यारे बच्चे
इस बगिया के फूल हैं

क्यारी क्यारी हँसकर कहती
ये ही कोहिनूर हैं

कच्ची मिट्टी की सोंधी खुशबू
इनके भीतर से आती है

कभी गुलाब कभी मोगरा बन कर
मन को खूब लुभाती है

इनकी मस्ती मे मस्त हो कर
आओ हम भी झूमें गाएँ

इनके ही संग मिल कर हम भी
इनके जैसे हो जाएँ।

~यशवन्त यश©

06 December 2013

इमली

खट्टी मीठी 
चटपटी 
चूरन मिली 
अटपटी 
एक दुकान पर रखी 
वो आज दिखी 
उससे जब 
नज़र मिली 
चलने लगा मन 
बचपन की गली  ....
चल चल मचल 
मचल कर जीभ
जिद्द मनवाकर 
ही टली ....
खाई उन्होने आज 
चखी हमने भी 
कई बरस बाद 
स्वादिष्ट और मीठी 
लाल इमली :)

~यशवन्त यश©

05 December 2013

धुन

बिखरी हुई हैं
हर तरफ
कुछ धुनें
जानी पहचानी
अनजानी
जो 
कभी शब्दों के संग
संगीत मे घुल कर
और कभी
दृढ़ संकल्प बन कर
कराती हैं एहसास 
खुद की अदृश्य
ताकत का
और ले चलती है
उजास की
गुलशन गली में । 

~यशवन्त यश©

04 December 2013

सोते हैं हर समय कभी तो जागते भले

 -पेश है मन की कही कुछ बेतुकी सी-

कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
तुम सोओ या जागो 
अब हम तो चले

बंद आँखों मे
खुद की तस्वीर देखेंगे
सुबह उठ कर शीशे में
माथे की लकीर देखेंगे

दिन मे यूं तो सब हमें
फकीर समझेंगे
हर शाम महलों के
अमीर समझेंगे

पर्दों-मुखौटों के हर राज़
नाराज़ हो चले
सोते हैं हर समय 
कभी तो जागते भले

कुछ नहीं तो रात में
सपने ही भले
गैरों की बारात में
अपने ही भले

सोना चांदी नहीं टकसाल में
भले कांसा ही ढले
कुछ भी नहीं बाज़ार में
अब हम तो चले। 

 ~यशवन्त यश

01 December 2013

दिसंबर भी आ गया

देखो न
दिसंबर भी आ गया
देखते देखते
साल बीतने को आ गया

क्या पाया
क्या खोया
कितना हँसा
कितना रोया
कब तक जागा
कब तक सोया 
कितना झेला
कितना ढोया
कुछ ही पन्ने बचे डायरी के
जिसमे इतिहास का अक्षर बोया  

यह अंत है नया दौर फिर
नए ठौर का बौर आ गया
देखो न
दिसंबर भी आ गया ।

~यशवन्त यश©