16 May 2019

काश! इसे समझ पाऊँ मैं.......

रात के गहरे
सुनसान में
अन्तर्मन के
घमासान में
आए नींद तो
सो जाऊँ मैं
सपनों में कहीं
खो जाऊँ मैं। 

सपने जो
दिखलाते हकीकत
भूत और वर्तमान की
सपने जो
झलक दिखाते
भविष्य के पूर्वानुमान की।

सब कुछ समझ कर
जानकर फिर भी
क्यूँ खुद का अहं
दिखाऊँ मैं
छल-प्रपंच ही
सत्य जीवन का
काश!
इसे समझ पाऊँ मैं।

-यश©
16/मई/2019 

इमारतों की ओर से वो तकता है


झुरमुटों की ओट से जो कभी निकलता था,
आजकल इमारतों की ओर से वो तकता है
असर उस पर भी है इस ज़ालिम ज़माने का
कि सुबह का सूरज भी बदल गया लगता है।

यश ©
20/12/2018

12 May 2019

सारांश संभव नहीं .....



अक्सर हम
कहना चाहते हैं
कुछ बातें
सारांश में
जिनके आरंभ से
अन्त तक की दूरी
कम से कम हो
और
शब्दों में
पूरा दम हो
लेकिन
हो नहीं पाता संभव
सार
क्योंकि
बनते हुए विचार
जब छूते हैं
अपना चरम
तब तक
खिंच चुकी होती हैं
सैकड़ों लकीरें ....
पड़ चुके होते हैं ...
निशान
कुछ काटे हुए
कुछ मिटाए हुए
और
बढ़ चुके होते हैं फासले
समय के पन्ने पर
आरंभ से
अन्त के।

-यश ©
12/मई/2019

01 May 2019

क्योंकि वो मजदूरी करता है





क्योंकि वो मजदूरी  करता है
किसी ऊंची इमारत पर
पटरे से लटकता है
गिरता है, मरता है
हर मौसम में
बदज़ुबानी और
जिल्लत को जीता है
क्योंकि वो मजदूरी करता है ।

क्योंकि वो मजदूरी करता है
लौट कर
अपने छोटे से घोंसले में
मिट्टी के चूल्हे पर सिकती
रोटियों को गिनता है
खाता-पीता है, सोता है
क्योंकि वो मजदूरी करता है ।

क्योंकि वो मजदूरी करता है
उसका दिन,उसकी रात
उसकी हर बात
उसका हर पल
नए कल की तलाश में
गुमशुदा सा रहता है
क्योंकि वो मजदूरी करता है ।

क्योंकि वो मजदूरी करता है
उसके रिश्ते-नाते
समाज,घर और परिवार
हर पैमाने पर
अपनी मासिक आय से
वो तुलता सा रहता है
क्योंकि वो मजदूरी करता है ।

क्योंकि वो मजदूरी करता है
इसलिए, है तो वो नौकर ही
जो खुद से बेपरवाह
बस अपने मालिक के रहम पर
पसीने से तर-बतर
अपना करम करता है
क्योंकि वो मजदूरी करता है ।

-यश ©
01/05/2019