18 April 2022

दो पल ....

एक भूले हुए दिन 
यहीं कहीं 
किसी कोने में 
मैंने रख छोड़े थे 
दो पल 
खुद के लिए।  
सोचा था-
जब कभी मन 
उन्मुक्त होगा 
किसी खिले हुए गुलाब की 
सब ओर फैली 
खुशबू की तरह 
तब उनमें से 
एक पल चुराकर 
महसूस कर लूँगा 
जेठ की तपती दोपहर में 
थोड़ी सी ठंडक। 
लेकिन 
भागमभाग भरे 
इस जीवन में 
कितने ही मौसम 
आए और गए 
कोने बदलते रहे 
मगर वो दो पल 
अभी भी वैसे ही 
सहेजे रखे हैं 
जीवन भर की 
जमा पूंजी की तरह। 

-यशवन्त माथुर©
18042022