वक़्त की देहरी को
पार करने की
कोशिश करते
अल्फ़ाज़
कभी-कभी
अव्यक्त -अधूरे
और छटपटाते
ही रह जाते हैं
हजार कोशिशों के बाद भी
जैसे दबा दिया जाता है
उन्हें
सिर्फ इसलिए
कि
अगर उन्हें कह दिया गया
तो देखना न पड़ जाए
निर्माण से पहले
विध्वंस का
रौद्र रूप।
17 12 2023
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ठीक कहा यशवन्त जी आपने
ReplyDeleteयदि निर्माण से पहले ही विध्वंस हो जाये तो इसका दुख भी कम नहीं होता
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
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