17 October 2010

मैं दीया हूँ.

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जलता हूँ
रोशनी देता हूँ
दुनिया को
सब कुछ सहता हूँ मैं
मगर
विचलित नहीं होता हूँ
जलता रहता  हूँ
निरंतर
अंतिम सांस तक
मैं दीया हूँ
सब कुछ देता हूँ
सब को
मगर मुझे क्या मिलता है
मन में अंधेरी तन्हाई के सिवा
बाती पे ज़ख्मों के सिवा
और फिर रुसवाई के सिवा
लौ के बुझ जाने के बाद
साँसों के उखड जाने के बाद
मेरी यादें रह जाती हैं
मैं वर्तमान से भूत बन जाता हूँ
किसी कविता या कहानी में छप जाता हूँ
यही है मेरा जीवन
मैं दीया हूँ.


[इस कविता को आप सुन भी सकते हैं मेरी आवाज़ में..]






(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)

26 comments:

  1. आपकी इस सुंदर भावों वाली कविता को पढ़कर मुझे अपनी एक ग़ज़ल का एक शेर लिखने की इच्छा हो रही है-

    ख़ुदपरस्ती के अंधेरे में भला कैसे जिएं,
    देख जैसे जल रहे हैं ये दिए मेरी तरह।

    दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. Beautiful creation and a bitter truth as well.

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  4. बहुत सुन्दर रचना
    विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
    ----------------
    मेरा जन्मदिवस - २ (My Birthday II)

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  5. बहुत पसन्द आया
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
    अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं


    विजयादशमी की बधाई एवं शुभकामनाएं

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  6. मगर मुझे क्या मिलता है
    मन में अंधेरी तन्हाई के सिवा
    बाती पे ज़ख्मों के सिवा
    और फिर रुसवाई के सिवा

    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना !

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  7. मेरी प्यारी सी चिन्मयी- तुम्हें विशेष धन्यवाद यहाँ आने के लिए.और हाँ इसी तरह हमेशा मुस्कुराती रहना.



    आदरणीय महेंद्र जी,वंदना जी,दिव्या जी,तृप्ति जी,संजय जी,-आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता को पसंद करने के लिए.



    महेंद्र जी -आप की ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.

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  8. सुंदर भाव, सुंदर आवाज। इस नन्हें ब्लॉगर पर भला कौन नहीं करेगा नाज़?

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  9. माफ़ कीजियेगा जाकिर जी...शायद आपने मेरा प्रोफाइल नहीं देखा....मैं २७ साल का छोटा सा बच्चा हूँ.ha ha ha
    वैसे मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

    Thanks a lot to Anupama Ji...

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  10. शब्द और आवाज़ दोनों कमाल ...... यशवंत
    बहुत अच्छी रचना और उतने ही अच्छे से उसकी प्रस्तुति ......

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  11. आपकी आवाज़ सुनकर तो और भी अच्छा लगा.... आपको तो कितनी चीज़ें आती हैं... :(

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  12. लौ के बुझ जाने के बाद
    साँसों के उखड जाने के बाद
    मेरी यादें रह जाती हैं
    मैं वर्तमान से भूत बन जाता हूँ

    बहुत ही सुन्‍दर एवं भावमय प्रस्‍तुति, ''सदा'' पर आपके प्रथम आगमन का स्‍वागत है ।

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  13. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। हमें ज़िन्दगी में दिया ही बनना चाहिए जो दूसरों को प्रकाश दे।

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  14. Sweetheart CHAITANYA,
    Respected Monika ji,Sada ji,Hasyfuhaar ji--aap sab ka bahut bahut bahut aabhaar.

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  15. बेहद सुन्दर प्रेरणादायी प्रस्तुति .............

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  16. बहुत ही सुन्दर...
    सादर बधाई....

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  17. कविता तो अच्छी है ही, पहली बार आप को सुनना भी अच्छा लगा। अभिव्यक्त अच्छी तरह से किया है आपने। बधाई।

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  18. वाह, अच्छी कविता
    बहुत बढिया

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  19. bahut sundar..yashwant...diye ke dard ko bakhubi ukera hai shabdon me..

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  20. बहुत सुन्दर रचना...

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  21. बहुत सुन्दर भाव हैं कविता के .सुन नहीं पाई हूँ अभी.फिर आउंगी.

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  22. बहुत सुन्दर....
    सूरज न बन पाए तो बन के दीपक जलता चल....!!

    ***punam***
    bas yun...hi...
    tumhare liye...

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