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जलता हूँ
रोशनी देता हूँ
दुनिया को
सब कुछ सहता हूँ मैं
मगर
विचलित नहीं होता हूँ
जलता रहता हूँ
निरंतर
अंतिम सांस तक
मैं दीया हूँ
सब कुछ देता हूँ
सब को
मगर मुझे क्या मिलता है
मन में अंधेरी तन्हाई के सिवा
बाती पे ज़ख्मों के सिवा
और फिर रुसवाई के सिवा
लौ के बुझ जाने के बाद
साँसों के उखड जाने के बाद
मेरी यादें रह जाती हैं
मैं वर्तमान से भूत बन जाता हूँ
किसी कविता या कहानी में छप जाता हूँ
यही है मेरा जीवन
मैं दीया हूँ.
[इस कविता को आप सुन भी सकते हैं मेरी आवाज़ में..]
(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)
[इस कविता को आप सुन भी सकते हैं मेरी आवाज़ में..]
(मैं मुस्कुरा रहा हूँ..)
आपकी इस सुंदर भावों वाली कविता को पढ़कर मुझे अपनी एक ग़ज़ल का एक शेर लिखने की इच्छा हो रही है-
ReplyDeleteख़ुदपरस्ती के अंधेरे में भला कैसे जिएं,
देख जैसे जल रहे हैं ये दिए मेरी तरह।
दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
Beautiful creation and a bitter truth as well.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteविजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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मेरा जन्मदिवस - २ (My Birthday II)
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteशब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
विजयादशमी की बधाई एवं शुभकामनाएं
मगर मुझे क्या मिलता है
ReplyDeleteमन में अंधेरी तन्हाई के सिवा
बाती पे ज़ख्मों के सिवा
और फिर रुसवाई के सिवा
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना !
मेरी प्यारी सी चिन्मयी- तुम्हें विशेष धन्यवाद यहाँ आने के लिए.और हाँ इसी तरह हमेशा मुस्कुराती रहना.
ReplyDeleteआदरणीय महेंद्र जी,वंदना जी,दिव्या जी,तृप्ति जी,संजय जी,-आप का बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता को पसंद करने के लिए.
महेंद्र जी -आप की ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
bahut sundar rachna!
ReplyDeleteसुंदर भाव, सुंदर आवाज। इस नन्हें ब्लॉगर पर भला कौन नहीं करेगा नाज़?
ReplyDeleteमाफ़ कीजियेगा जाकिर जी...शायद आपने मेरा प्रोफाइल नहीं देखा....मैं २७ साल का छोटा सा बच्चा हूँ.ha ha ha
ReplyDeleteवैसे मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
Thanks a lot to Anupama Ji...
शब्द और आवाज़ दोनों कमाल ...... यशवंत
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना और उतने ही अच्छे से उसकी प्रस्तुति ......
आपकी आवाज़ सुनकर तो और भी अच्छा लगा.... आपको तो कितनी चीज़ें आती हैं... :(
ReplyDeleteलौ के बुझ जाने के बाद
ReplyDeleteसाँसों के उखड जाने के बाद
मेरी यादें रह जाती हैं
मैं वर्तमान से भूत बन जाता हूँ
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति, ''सदा'' पर आपके प्रथम आगमन का स्वागत है ।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। हमें ज़िन्दगी में दिया ही बनना चाहिए जो दूसरों को प्रकाश दे।
ReplyDeleteSweetheart CHAITANYA,
ReplyDeleteRespected Monika ji,Sada ji,Hasyfuhaar ji--aap sab ka bahut bahut bahut aabhaar.
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 10- 11 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ...शीर्षक विहीन पोस्ट्स ..हलचल हुई क्या ???/
बेहद सुन्दर प्रेरणादायी प्रस्तुति .............
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteसादर बधाई....
कविता तो अच्छी है ही, पहली बार आप को सुनना भी अच्छा लगा। अभिव्यक्त अच्छी तरह से किया है आपने। बधाई।
ReplyDeletebhavpoorna sunder rachna ..
ReplyDeleteवाह, अच्छी कविता
ReplyDeleteबहुत बढिया
bahut sundar..yashwant...diye ke dard ko bakhubi ukera hai shabdon me..
ReplyDeletebahut hi sundar rachana hai..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव हैं कविता के .सुन नहीं पाई हूँ अभी.फिर आउंगी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसूरज न बन पाए तो बन के दीपक जलता चल....!!
***punam***
bas yun...hi...
tumhare liye...