मैं फर्श पर हूँ
अर्श की ओर ले चलो
संघर्ष कर रहा हूँ
उत्कर्ष की ओर ले चलो
हो चुका पतन मेरा
अविरल जल रहा हूँ
रहा न अनुराग किसी से
विद्वेष कर रहा हूँ
यह क्यों और कैसे
या स्वाभाविक है
नहीं पता
आस्तित्व खो चुका
चौराहे पर हूँ खड़ा
कोई हाथ थाम मेरा
मुकाम पर ले चलो
मैं फर्श पर हूँ
मुझे अर्श की ओर ले चलो.
वाह...बहुत खूब..
ReplyDeleteअच्छी रचना है...
हार न माने...उठिए अब सारा जहाँ आपका है.. चलिए चलें उन्मुक्त आसमां की सैर करें...
bahot acchaa
ReplyDeleteUmmeed h k Ishwar apko asmaan se bhi unchaaiyaan pradaan kare.. sundar rachna :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...
swavivek hi manushya ko un ucchayiyon tak le ja sakta hai!
ReplyDeletesundar rachna!
मेरे ब्लॉग पर आकर प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी को सादर धन्यवाद!
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