03 November 2010

अर्श की ओर ले चलो

मैं फर्श पर हूँ
अर्श की ओर ले चलो
संघर्ष कर रहा हूँ
उत्कर्ष  की ओर ले चलो

हो चुका पतन मेरा
अविरल जल रहा हूँ
रहा न अनुराग किसी से
विद्वेष कर रहा हूँ

यह क्यों और कैसे
या स्वाभाविक है
नहीं पता
आस्तित्व खो चुका
चौराहे पर हूँ खड़ा

कोई हाथ थाम मेरा
मुकाम पर ले चलो
मैं फर्श पर हूँ
मुझे अर्श की ओर ले चलो.

6 comments:

  1. वाह...बहुत खूब..
    अच्छी रचना है...
    हार न माने...उठिए अब सारा जहाँ आपका है.. चलिए चलें उन्मुक्त आसमां की सैर करें...

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  2. Ummeed h k Ishwar apko asmaan se bhi unchaaiyaan pradaan kare.. sundar rachna :)

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  3. बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...

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  4. swavivek hi manushya ko un ucchayiyon tak le ja sakta hai!
    sundar rachna!

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  5. मेरे ब्लॉग पर आकर प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी को सादर धन्यवाद!

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