14 November 2010

क्या कहें

(चित्र साभार:गूगल)


 कहने को यूँ तो
बहुत सी बातें हैं मगर
क्या कहें और किस से कहें
कब कहें,कैसे कहें
उठते हैं बहुत से प्रश्न
मन के कोने में
और फिर वही उदासी
छा जाती है
क्योंकि
हर तरफ नज़र आते हैं
वास्तविक से लगने वाले 
वही
आभासी चित्र 
जो खुद भटक रहे हैं 
अपने चरित्र की तलाश में.

11 comments:

  1. आभासी चित्र
    जो खुद भटक रहे हैं
    अपने चरित्र की तलाश में.

    बहुत सुंदर बिम्ब लिया यशवंत......
    चित्र भी रचना का साथ देता हुआ..... सुंदर पोस्ट

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  2. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

    yaswant bhai

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  3. आभासी चित्र
    जो खुद भटक रहे हैं
    अपने चरित्र की तलाश में.
    ..manobhavon ke sundar chitran..

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  4. बहुत अच्छी तरह से आप मन की बातें कह देते है, कविता के माध्यम से. साथ में चित्र भी अच्छा चुना है , जो आपकी कविता को और भी सशक्त बना रहा है.

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  5. अच्छा चित्र....
    सुन्दर कविता !!!

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  6. बेहतरीन भावाव्यक्ति।
    बाल दिवस की शुभकामनायें.
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  7. bahut sundar likha aapne,bahut accha laga padhkar.aur aapki anmol tippani ke liye shukriya,

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  8. ye dwand ....
    aabhasi chitron se ghire hone ki kasak....
    sundarta se vyakt hui hai!

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  9. अरे आपने तो गाना बदल दिया. ये वाला भी अच्छा लग रहा है.

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  10. आदरणीय मोनिका जी,संजय जी,कविता जी,वंदना जी,हरदीप जी,वंदना गुप्ता जी,शीतल जी,दिव्या जी,एवं अनु जी--आप सभी के उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

    वंदना जी-चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए आप का विशेष आभार.

    Vandana!!!जी -जी हाँ बहुत दिन से एक ही ट्रैक चल रहा था इसलिए बदल लिया.आप मेरी पसंद के audios-videos इस लिंक पर भी देख सकती हैं-
    http://yashwantrajbalimathur.blogspot.com

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