(चित्र साभार:गूगल) |
कहने को यूँ तो
बहुत सी बातें हैं मगर
क्या कहें और किस से कहें
कब कहें,कैसे कहें
उठते हैं बहुत से प्रश्न
मन के कोने में
और फिर वही उदासी
छा जाती है
क्योंकि
हर तरफ नज़र आते हैं
वास्तविक से लगने वाले
वही
आभासी चित्र
जो खुद भटक रहे हैं
अपने चरित्र की तलाश में.
आभासी चित्र
ReplyDeleteजो खुद भटक रहे हैं
अपने चरित्र की तलाश में.
बहुत सुंदर बिम्ब लिया यशवंत......
चित्र भी रचना का साथ देता हुआ..... सुंदर पोस्ट
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
yaswant bhai
आभासी चित्र
ReplyDeleteजो खुद भटक रहे हैं
अपने चरित्र की तलाश में.
..manobhavon ke sundar chitran..
बहुत अच्छी तरह से आप मन की बातें कह देते है, कविता के माध्यम से. साथ में चित्र भी अच्छा चुना है , जो आपकी कविता को और भी सशक्त बना रहा है.
ReplyDeleteअच्छा चित्र....
ReplyDeleteसुन्दर कविता !!!
बेहतरीन भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteबाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
bahut sundar likha aapne,bahut accha laga padhkar.aur aapki anmol tippani ke liye shukriya,
ReplyDeletesundar rachna --badhai
ReplyDeleteye dwand ....
ReplyDeleteaabhasi chitron se ghire hone ki kasak....
sundarta se vyakt hui hai!
अरे आपने तो गाना बदल दिया. ये वाला भी अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteआदरणीय मोनिका जी,संजय जी,कविता जी,वंदना जी,हरदीप जी,वंदना गुप्ता जी,शीतल जी,दिव्या जी,एवं अनु जी--आप सभी के उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
ReplyDeleteवंदना जी-चर्चा मंच पर मेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए आप का विशेष आभार.
Vandana!!!जी -जी हाँ बहुत दिन से एक ही ट्रैक चल रहा था इसलिए बदल लिया.आप मेरी पसंद के audios-videos इस लिंक पर भी देख सकती हैं-
http://yashwantrajbalimathur.blogspot.com