23 November 2010

मैं मुस्कुरा रहा हूँ

अच्छा या बुरा जो चाहे वो समझ लो मुझ को,
जो मेरा मन कहे वो करता आ रहा हूँ,
कितने भी तीर चुभो दो भले ही,
मैं मुस्कुरा रहा हूँ


तुमने सोचा होगा,
तुम्हारी कृत्रिम अदाओं का,
कुछ तो असर होगा मगर,
मैं भी मैं ही हूँ, मैं चलता जा रहा हूँ
बे परवाह तुमसे, मैं मुस्कुरा रहा हूँ


मेरी खामोशी को,
न समझ लेना स्वीकृति,
मौन रख कर भी मैं,
कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ

मैं मुस्कुरा रहा हूँ-
कि मुस्कुराना फितरत है मेरी,
खुद की नज़रों में पल पल,
मैं चढ़ता जा रहा हूँ

मैं मुस्कुरा रहा हूँ

12 comments:

  1. मेरी खामोशी को,
    न समझ लेना स्वीकृति,
    मौन रख कर भी मैं,
    कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
    है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ

    खूबसूरत पंक्तियाँ

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  2. बहुत ही सुन्दर कविता.

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  3. मौन रह कर भी कुछ कुछ कहे जा रहा हूँ ...
    अच्छा है !

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. खुबसूरत रचना
    है आपकी आभार
    कभी यहाँ भी आये
    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  7. मौन रख कर भी मैं,
    कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
    behad khubsoorat panktiyaan.. khud ki nazaro me chadhne se behtar kuchh bhi nahi

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  8. अब जाके समझ में आया कि आपके हर पोस्ट के अंत में मैं मुस्कुरा रहा हूँ क्यूँ लिखा रहता है?
    वैसे यह कविता आपने ब्लॉग थीम को अच्छी तरह से दर्शा रहा है.सभी पंक्तियाँ लाजवाब है.

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  9. मेरी खामोशी को,
    न समझ लेना स्वीकृति,
    मौन रख कर भी मैं,
    कुछ कुछ कहता जा रहा हूँ,
    है नहीं कोई भाव - मैं मुस्कुरा रहा हूँ

    खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  10. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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