प्यार उसने भी किया था
महसूस उसने भी किया था
सपने उसने भी बुने थे
दिन महकने लगे थे
पर अचानक
एक जोर का झटका
हिला गया उसको
और उसने देखा
शीशे के दिल के
अनगिनत टुकड़े
ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
और सहारा देने को
आंसू अपनी बाहें फैलाये
कह रहे थे -
ये तो होना ही था.
महसूस उसने भी किया था
सपने उसने भी बुने थे
दिन महकने लगे थे
पर अचानक
एक जोर का झटका
हिला गया उसको
और उसने देखा
शीशे के दिल के
अनगिनत टुकड़े
ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
और सहारा देने को
आंसू अपनी बाहें फैलाये
कह रहे थे -
ये तो होना ही था.
शीशा आख़िर शीशा ही तो ठहरा
ReplyDeletebhut hi khubsurat panktiya hai dil ke bhaavo ko batati....
ReplyDeleteशीशे के दिल के
ReplyDeleteअनगिनत टुकड़े
ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
bahut sundar panktiyan ...
दोनों ने किया था प्यार मगर,
ReplyDeleteमुझे याद रहा..... तू भूल गई ,
मेरी महुआ....ओ मेरी महुआ...
सीसे का टूटना तो नियति है, प्यार बचाया जा सकता है प्यार से .. अच्छे शब्द बधाई
ReplyDeleteशीशे के दिल के
ReplyDeleteअनगिनत टुकड़े
ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
मार्मिक ....संवेदनशील भाव
बिलकुल, टूटने के लिए ही तो बना है !
ReplyDeleteशीशे के दिल के
ReplyDeleteअनगिनत टुकड़े
ज़मीन पर बिखरे पड़े थे
और सहारा देने को
आंसू अपनी बाहें फैलाये
कह रहे थे -
ये तो होना ही था....
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
ओह बहुत ही गहरी बात कह दी…………बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut hi badhiyaa
ReplyDeleteप्यार मे यही होता है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
और सहारा देने को
ReplyDeleteआंसू अपनी बाहें फैलाये
कह रहे थे -
ये तो होना ही था.
End of the poetry is very touching.
नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .
दिल वो भी शीशे का -टूटना ही था ......
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति ..
शुभकामनायें ...
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteKhubsurat abhivykti..aabhar
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