हवाई जहाज़ों में उड़ना
शताब्दी में चलना
मोबाइल पर बातें करना
लैपटॉप की शान बघारना
सूट बूट और टाई लगा कर
एसी कार से उतरना
सजी महफ़िलों में
जाम से जाम टकराना
और डूब जाना
अनगिनत रंगीनियों में
किसी की आदत है
ज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
और शायद किसी के लिए
नशा भी है
मगर-
कभी उनका भी हाल ले लो
जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
शताब्दी में चलना
मोबाइल पर बातें करना
लैपटॉप की शान बघारना
सूट बूट और टाई लगा कर
एसी कार से उतरना
सजी महफ़िलों में
जाम से जाम टकराना
और डूब जाना
अनगिनत रंगीनियों में
किसी की आदत है
ज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
और शायद किसी के लिए
नशा भी है
मगर-
कभी उनका भी हाल ले लो
जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
कभी उनका भी हाल ले लो
ReplyDeleteजो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
बहुत सजीव अभिव्यक्ति.
गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।
ReplyDeleteयशवंत जी जो खुद गरीबी से उठकर अमीरी का आकाश छूते हैं वो भी गरीबों के लिए कुछ नहीं करते .कितने ही नेता हैं जो आज कोठियों में आराम फरमाते है वो कभी गली गली वोट मांगते फिरते थे पर अब उन्हें जनता की सुध कहाँ .बहुत विरोधाभासी स्थिति है .
ReplyDeleteकभी उनका भी हाल ले लो
ReplyDeleteजो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
और इसी सपने में पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है ....
किसी की आदत है
ReplyDeleteज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
और शायद किसी के लिए
नशा भी है|
बहुत सजीव अभिव्यक्ति.
ये और कुछ नहीं हमारा द्रिष्टि-दोष है,जो दूसरों की तकलीफ़ें हमें नही दिखती। बहुत अच्छा लिखा है ।शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहोश में आयें तो नोटिस करें...उम्दा रचना.
ReplyDeleteकभी उनका भी हाल ले लो
ReplyDeleteजो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
खूब कहा ...पर उन्हें कहाँ होश आने वाला है...
बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
रोज सुबह एक परिवार को साईकिल पर जाते हुए देखती हूँ ...पति सायकिल पकड़कर चलता है , उसपर उसके तीन बच्चे , साथ में पैदल पत्नी ...पास में ही प्रेस की थड़ी लगाते हैं ...
ReplyDeleteकई बर उन्हें देख कर यही सवाल मन में आता है , यदि एक दिन भी ख़राब मौसम या बीमारी के कारण नहीं आ सके तो??
इस छोटी सी पोस्ट में आपने बहुत ही गहरी बात कह दी जो एक कडवा सच है पसंद आया.
ReplyDeleteकभी उनका भी हाल ले लो
ReplyDeleteजो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
...good.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा ...एक कडवा सच ....
ReplyDeleteयथार्थपरक रचना.... हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteकल 24/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
किसी की आदत है
ReplyDeleteज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
और शायद किसी के लिए
नशा भी है
मगर-
कभी उनका भी हाल ले लो
जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
जीवन की सच्चाइयाँ हैं दोनों ही....
यथार्थ और कडुआ यथार्थ....
कभी उनका भी हाल ले लो
ReplyDeleteजो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.
बेहद ही संवेदनशील ..भाव स्पर्शी अभिव्यक्ति