12 April 2011

ये सपने

हवाई जहाज़ों में उड़ना
शताब्दी में चलना
मोबाइल पर बातें करना
लैपटॉप की शान बघारना
सूट बूट और टाई लगा कर
एसी कार से उतरना
सजी महफ़िलों में
जाम से जाम टकराना
और डूब जाना
अनगिनत रंगीनियों  में

किसी की आदत है
ज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
और शायद किसी के लिए
नशा भी है
मगर-

कभी उनका भी हाल ले लो
जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
और जूझते रहते हैं
हर शाम को
दो रोटी की जुगाड़ को.


19 comments:

  1. कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.
    बहुत सजीव अभिव्यक्ति.

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  2. गहरी बात कह दी आपने। नज़र आती हुये पर भी यकीं नहीं आता।

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  3. यशवंत जी जो खुद गरीबी से उठकर अमीरी का आकाश छूते हैं वो भी गरीबों के लिए कुछ नहीं करते .कितने ही नेता हैं जो आज कोठियों में आराम फरमाते है वो कभी गली गली वोट मांगते फिरते थे पर अब उन्हें जनता की सुध कहाँ .बहुत विरोधाभासी स्थिति है .

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  4. कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.
    और इसी सपने में पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है ....

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  5. किसी की आदत है
    ज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
    और शायद किसी के लिए
    नशा भी है|
    बहुत सजीव अभिव्यक्ति.

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  6. ये और कुछ नहीं हमारा द्रिष्टि-दोष है,जो दूसरों की तकलीफ़ें हमें नही दिखती। बहुत अच्छा लिखा है ।शुभकामनायें !

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  7. बहुत सुन्दर

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  8. होश में आयें तो नोटिस करें...उम्दा रचना.

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  9. कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.

    खूब कहा ...पर उन्हें कहाँ होश आने वाला है...

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  10. रोज सुबह एक परिवार को साईकिल पर जाते हुए देखती हूँ ...पति सायकिल पकड़कर चलता है , उसपर उसके तीन बच्चे , साथ में पैदल पत्नी ...पास में ही प्रेस की थड़ी लगाते हैं ...
    कई बर उन्हें देख कर यही सवाल मन में आता है , यदि एक दिन भी ख़राब मौसम या बीमारी के कारण नहीं आ सके तो??

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  11. इस छोटी सी पोस्ट में आपने बहुत ही गहरी बात कह दी जो एक कडवा सच है पसंद आया.

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  12. कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.
    ...good.

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  13. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  14. बहुत अच्छा लिखा ...एक कडवा सच ....

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  15. यथार्थपरक रचना.... हार्दिक बधाई।

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  16. कल 24/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  17. किसी की आदत है
    ज़रूरत है,मजबूरी है किसी की
    और शायद किसी के लिए
    नशा भी है
    मगर-

    कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.

    जीवन की सच्चाइयाँ हैं दोनों ही....
    यथार्थ और कडुआ यथार्थ....

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  18. कभी उनका भी हाल ले लो
    जो सिर्फ ये सपने देखते हैं
    और जूझते रहते हैं
    हर शाम को
    दो रोटी की जुगाड़ को.
    बेहद ही संवेदनशील ..भाव स्पर्शी अभिव्यक्ति

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