09 June 2011

तुम आसमां हो

तुम जैसा
बनने की कोशिश
करता हूँ
कभी कभी
तुम जैसा
उठने की कोशिश
करता हूँ कभी कभी

मैं तुम को
पाना चाहता हूँ
छूना चाहता हूँ
जितनी कोशिश करता हूँ
तुम और ऊंचे उठ जाते हो
हो जाते हो
मेरी पहुँच से
बहुत दूर

ताकते रह जाना है
तुम को
यूँ ही
हमेशा
क्योंकि -
मैं ज़मीं
और तुम आसमां हो .

33 comments:

  1. मैं तुम को
    पाना चाहता हूँ
    छूना चाहता हूँ
    जितनी कोशिश करता हूँ
    तुम और ऊंचे उठ जाते हो
    हो जाते हो
    मेरी पहुँच से
    बहुत दूर
    बहुत भावपूर्ण कविता .बधाई.

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  2. ताकते रह जाना है
    तुम को
    यूँ ही
    हमेशा
    क्योंकि -
    मैं ज़मीं
    और तुम आसमां हो .
    सुंदर आशा से सजी अभिव्यक्ति ...!!
    sunder rachna ...!!

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  3. सुन्दर ....
    मैं ज़मीं
    और तुम आसमां हो.... .
    कैसे होगा ये मिलन

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  4. मैं ज़मीं
    और तुम आसमां हो .बहुत खूब…… क्षितिज भी तो है… सुन्दर अभिव्यक्ति् धन्यवाद

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  5. बहुत खूब! सुन्दर भावपूर्ण रचना...दूर क्षितिज में ज़मीन और असमान के मिलने का भ्रम भी जीवन में कुछ क्षण सुकून के देने के लिये काफी है..

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  6. BAHUT HI SUNDER BHAVPOORAN RACHNA YASHWANT BHAI

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  7. बहुत सुंदर भाव ! क्षितिज तो एक भ्रम है पर ऊँचा उठने की चाह हो तो आसमान कदमों तले बिछ जाता है ...

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  8. very beautifully showing the intricate desires of our lives.... some are achievable and few are just meant to be desires !!!

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  9. वाह ... बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  10. वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई

    नीरज

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  11. बहुत ही सुन्‍दर रचना...बधाई

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  12. वाह। शानदार। पर आसमान और जमीन का भी मिलन होता है क्षितिज पर। आभार।

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  13. रचना अच्छी लगी।

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  14. ताकते रह जाना है
    तुम को
    यूँ ही
    हमेशा
    क्योंकि -
    मैं ज़मीं
    और तुम आसमां हो .

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं .....

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  15. बहुत सुंदर भाव, अच्छी रचना !
    पा लो खुद को तो सारा जहां मिल जाता है ...

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  16. भावों को खूबसूरती से सहेजा है ..

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  17. सार्थक अभिव्यक्ति।

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  18. बहुत सुन्दर रचना,... उम्दा...आपके ब्लॉग में आना सार्थक हुवा...

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  19. आसमान और जमीन का भी मिलन होता है क्षितिज पर,
    सुन्दर रचना

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  20. तब तो सिर्फ देखने के लायक ! बहुत गर्भित !

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  21. मैं तुम को
    पाना चाहता हूँ
    छूना चाहता हूँ
    जितनी कोशिश करता हूँ
    तुम और ऊंचे उठ जाते हो
    हो जाते हो
    मेरी पहुँच से
    बहुत दूर... bhut hi khubsurat ehsaaso ko vaykat kiya hai apne...

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  22. संगीत के साथ कविता पढने का सुखद अनुभव ........शुक्रिया.(मै अभी तक नहीं कर पाई हू फिर से सिखाना होगा )

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  23. achhi rachna hai bahut sunder....

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  24. प्यार की सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  25. खूबसूरत भावभूमि पर लिखी गयी एक बहुत ही कोमल रचना ! बधाई स्वीकार करें

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  26. सुन्दर अभिव्यक्ति।
    बधाई- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  27. बहुत अच्छा अभिव्यक्त किया है ......जमीं और आस्मां क्षितिज पर मिल जाने का भरम तो दे ही जाते हैं ...... शुभकामनायें !

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  28. बस ऊंचा उठने की चाह बनी रहे तो आसमान और जमीन का भी मिलन होता है क्षितिज पर......... सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

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  29. बहुत खूब कहा है आपने ।

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  30. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  31. खूबसूरत....... कोमल रचना

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