30 June 2011

तुम्हारा जाना...

और आज
आखिर तुम चली ही गयी
उस ओर
जहाँ से वापस आना
शायद मुमकिन नहीं
तुम गिन रही थी 
साँसों को
बरसों  से
तड़प रही थी तुम
आज़ाद हो जाने को
मुक्ति  पाने को
और आज
तुम हो गयी हो मुक्त
भौतिक रूप में
औपचारिक रूप में
किन्तु न हो सकोगी मुक्त
मेरी धुंधली सी यादों से
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उन अहसासों को
न भूल सकुंगा
तुम्हारे उस साथ को
जो क्षणिक ही सही
पर मुझ को भी मिला था
ये तो होना ही था
हुआ भी
आज तुम गयी
और कल
शायद मेरी बारी हो.

26 comments:

  1. एक भौतिक वस्तु से इतना लगाव तारीफ के काबिल नहीं लेकिन अपनी देह की तुलना इस से की जा सकती है क्योकि हम सभी पाँच भौतिक प्रदार्थों से ही तो मिलकर बने हैं .कविता रूप में भावनाओं की यह अभिव्यक्ति अत्यंत सराहनीय है .बधाई .

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  2. चवन्नी के संदर्भ में अठन्नी की जुबानी उसका दर्द पढ़ें को मिला.

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  4. चवन्नी से आपका लगाव देखकर बहुत अच्छा लगा .....हर आने वाले को एक-न-एक दिन तो जाना ही होता है

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  5. khubsurat aur sarthak abhivakti....

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  6. ये तो होना ही था
    हुआ भी
    आज तुम गयी
    और कल
    शायद मेरी बारी हो.

    हाँ यही तो होना है....... एक न एक दिन तो सबको जाना है...कल तो अपनी भी बारी है... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  7. लखनऊव्वा भाषा में अब हर कोई "चवन्नी कम" हो गया ।

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  8. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

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  9. अलग सा बिम्ब, सुंदर रचना

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  10. कल मेरी बारी है ... यह पंक्तियाँ .. अट्ठनी की भी हो सकती हैं और इंसान की भी ..जाना तो सबको ही है :)

    अच्छी प्रस्तुति

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  11. yeh to hoga hi jaise purane kapde ko badhal diya jata hai usi yeh bhi huaa hai sikka to kuchh samay baad 1rs bhi band ho jayega kyoki itni magai ho rahi hai ki 1rs ka ab kuchh nahi milta hai so vo band hona hi hai
    come my blog link

    chhotawriters.blogspot.com

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  12. पूजा खातिर चाहिए सवा रुपैया फ़क्त |
    हुई चवन्नी बंद तो खफा हो गए भक्त ||

    कम से कम अब पांच ठौ, रूपया पावैं पण्डे |
    पड़ा चवन्नी छाप का, नया नाम बरबंडे ||

    बहुतै खुश होते भये, सभी नए भगवान् |
    चार गुना तुरतै हुआ, आम जनों का दान ||

    मठ-मजार के नगर में, भर-भर बोरा-खोर |
    भ'टक साल में भेजते, सिक्के सभी बटोर || |

    भ'टक-साल सिक्का गलत, मिटता वो इतिहास |
    जो काका के स्नेह सा, रहा कलेजे पास ||

    अन्ना के विस्तार को, रोकी ये सरकार |
    चार-अन्ने को लुप्त कर, जड़ी भितरिहा मार ||

    बड़े नोट सब बंद हों, कालेधन के मूल |
    मठाधीश होते खफा, तुरत गयो दम-फूल ||

    महाप्रभु के कोष में, बस हजार के नोट |
    सोना चांदी-सिल्लियाँ, रखें नोट कस छोट ||

    बिधि-बिधाता जान लो, होइहै कष्ट अपार |
    ट्रक- ट्रैक्टर से ही बचे, गर झूली सरकार ||

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  13. बहुत-बहुत बधाई |
    चवन्नी के जाने का दर्द वो क्या जाने बाबू--
    जिन्हें हजार के नोटों से ही मतलब ||

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  14. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना | सचमुच चवन्नी का जाना पता नहीं क्यों आज भावमय कर जा रहा है | इसी विषय वष्टु पर मेरी कविता जरुर पढ़ें |
    धन्यवाद् |
    http://pradip13m.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html

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  15. चवन्नी को समर्पित लाजवाब कविता...

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  16. हर कोई चला ही जाता है यही तो नियति है

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  17. वाह, इसे कहते हैं बिल्कुल सोलह आने कवि का दिल जो एक चवन्नी से भी गुफ्तगू कर बैठता है..

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  18. बहुत सुंदर रचना..

    मित्रों अब सवा रुपये के प्रसाद का क्या होगा। आमतौर पर मनौती सवा रूपये के प्रसाद की ही मानी जाती थी।

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  19. गहरे जज्बात। आभार।

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  20. Wah kya bat kahi hai sir ji....

    ap bhi aaeye.... hamara bhi hausla badhaiye

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  21. जाती नहीं तो क्या करती, इसे पूछता भी कौन था भाई? अब नंबर है अठन्नी और फिर रूपल्ली का|

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  22. किन्तु न हो सकोगी मुक्त
    मेरी धुंधली सी यादों से ....बहुत सुन्दर

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  23. बहुत बढ़िया लिखा है आपने..बचपन की मस्ती जुड़ी है इस सिक्के से.

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  24. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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  25. यादों में संजोयी गए तथ्य बीतते नहीं हैं!
    सुन्दर रचना!

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