16 July 2011

किस पर लिखूं?

बहुत से हैं विषय
विचार बहुत से हैं
निगाहों के हर तरफ
अंदाज़ बहुत से हैं

क्या  लिखूं
ये तो मैं जानता हूँ
सोच रहा हूँ
किस पर लिखूं?

सावन के महीने में
घिर आना बादलों का
कहीं  पर बरसना
कहीं से चल देना
बिन बरसे ही

दुनिया के किसी कोने में
सावन की पड़ने वाली बर्फ
ऊनी लबादों में लिपटे
लोगों पर लिख दूं .....

आतंक के साये में
डरे चेहरों का खौफ
या शब्द दे दूं
इंसानी क्रूरता को  .......

लिख  दूं कोई गीत गज़ल
कविता या कहानी
या लिख दूं कोई नाटक
कहूँ पात्रों की जुबानी

बहुत से रंग हैं यहाँ
कुछ उजले कुछ धुंधले
कौन  सा रंग चुनूँ
विचारों की इस रेलमपेल में
विषयों के इस अथाह समुन्दर में

किसे चुनूँ
किस पर लिखूं?

28 comments:

  1. सचमुच अनगिनत विषय हैं चारों ओर कवि मन को सभी अपने लगते हैं ! फिर भी आपने जो लिखा बहुत बढिया है ! और गीत भी बहुत सुंदर है !

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  2. बहुत बहुत बधाई |
    अच्छा चित्रण ||
    अच्छा चलो मैं बताता हूँ--
    कोई विषय चुन लो इसी २०-२० से ||


    ट्वेंटी - ट्वेंटी समाचार --

    लेकिन दर्शन-दूर है |
    हरदिन का दस्तूर है --

    मोहन करते माँजी-माँजी, आर एस एस ने लाठी भांजी |
    राहुल मोस्ट वांटेड बेचलर, दिग्गी उनके हाँजी हाँजी |
    महा-घुटाले-बाज तिहाड़ी, फटकारे नित चाबुक काजी |
    कातिल का महिमा-मंडन, जीते जालिम हारी बाजी--

    आदत से मजबूर है |
    हरदिन का दस्तूर है -

    बड़ी शान से अपनी करनी हारर-किलर सुनाता जाये |
    सालों बन्द कोठरी अन्दर बहिना अपनी मौत बुलाएं |
    कहीं बाप के अनाचार का घड़ा फूटने को आये |
    बेटी - नौकर - चाकर सारे फूटी आँख नहीं भाये--

    बनता कातिल क्रूर है |
    हरदिन का दस्तूर है --

    भाई भाई काट रहा , तो कही भीड़ का न्याय है |
    उधर नक्सली रेल उडाता, इधर पुलिस असहाय है |
    कालेधन के भूखेपन पर बाबा गया अघाय है |
    लोकपाल के दल-दल पर दल जुदा-जुदा दस राय है--

    दिल्ली लगती दूर है
    हरदिन का दस्तूर है --

    बड़ी सोनिया सा चल करके छटी-सानिया ने देखा
    हाथ पे उसने अपने पाई तब पाकिस्तानी रेखा |
    सट्टेबाज - खिलाड़ी सबकी लाजवाब लगती एका |
    बेशुमार ताकत से हरदिन बदल रहे रब का लेखा --

    ताकत से मगरूर है |
    हरदिन का दस्तूर है --

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  3. बहुत से रंग हैं यहाँ
    कुछ उजले कुछ धुंधले
    कौन सा रंग चुनूँ
    विचारों की इस रेलमपेल में
    विषयों के इस अथाह समुन्दर में

    किसे चुनूँ
    किस पर लिखूं?
    ..मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों के द्वंध को आपने बहुत बढ़िया माध्यम से प्रस्तुत किया है...
    सच में एक संवेदनशील इंसान के सम्मुख ऐसी ओह-पोह की स्थिति कई बार निर्मित हो जाती है. तब उसे व्यक्त करना बहुत मुश्किल हो जाता है..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति..

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  4. आतंक के साये में
    डरे चेहरों का खौफ
    या शब्द दे दूं
    इंसानी क्रूरता को ..बहुत सुन्दर ठंग से मन की उलझन कॊ रचना में ढाल लिया... सुन्दर....

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  5. किसे चुनूँ
    किस पर लिखूं?
    sahi kaha yashwant ji,ye asmanjas to aaj sabhi ko hai.bahut sundar bhavabhivyakti.badhai.

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  6. विषय कोई भी लेखनी सटीक हो तो दिल तक ज़रूर पहुँच जाती है |

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  7. जो अच्छा लगे उस को चुन लो
    अच्छी कविता
    आभार

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  8. sahi me kis kis ko kalam me baandhu? aachhi tarah se man ke pashopesh ke ukera hai aapne.....

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  9. the never ending question :D
    It rises every time isn't it.

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  10. विषय को तलाशने की प्रक्रिया भी अच्छी लगी ..... शुभकामनायें !

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  11. बेहतरीन रचना, और बहुत खुबसूरत शब्दों से सजी....

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  12. आप एक हंस की तरह मोती को चुन लीजिए ..........

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  13. लिखने वाले हाथ कब रुकते हैं दोस्त उठाओ कोई भी ज्वलत विषय और बना दो एक मशाल :)
    बहुत खूबसूरत रचना |

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  14. क्या बात है.. सटीक प्रस्तुति पढ़ने को मिला .आभार.

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  15. बेहतरीन रचना,

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  16. बहुत जीवंत वर्णन किया है. आभार.

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  17. एक लेखक को यह प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं...सुन्दर रचना

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  18. sach kha aapne ..kis kis par likhun...anginat vishay hain...

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  19. सचमुच बडा दुविधाजनक हो गया है आजकल।

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    जीवन का सूत्र...
    NO French Kissing Please!

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  20. उलझन कॊ रचना में ढाल लिया... सुन्दर....

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  21. ये कशमकश ही उम्दा स्रुजान का आधार बनती है| आप की इस कविता ने आपके विचारों के फलक के विस्तार को दर्शाया है|

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  22. सही दर्शाया अन्तर्मन की अन्तर्द्वंद को....

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  23. किसे चुनूँ
    किस पर लिखूं?
    मन में उमड़ते विचारों और उलझन को आपने बहुत शब्दों के माध्यम बहुत ही अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है... भावपूर्ण रचना...

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  24. जो दिल में आए।

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  25. ये कशमकश जीवन की कशमकश बन जाती है .. पर नयी सोच भी विकसित करती है ...

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  26. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।

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