बौर बन चुके आम
कीमत बस खास की है
सोच का काम तमाम
आज़ादी बकवास की है। ......
पढ़ना वढ्ना मैं न जानूँ
लढना भिड़ना जानूँ मैं
दोस्त कोई न नाता मेरा
कीमत पूरी मांगू मैं । .........
मैं मैं- मैं मैं
चें चें- पें पें
क्या लिख रहा हूँ
पता नहीं है
झेलने वाले झेल रहे हैं
क्या कहेंगे समझ नहीं है । ........
पेन टूट गया ,खो गयी डायरी
की बोर्ड की अब चढ़ी खुमारी
खटर पटर पर ब्लोगिंग श्लौगिंग
नशा है कोई या अजब बिमारी । .....
किसी को टेढ़ा टेढ़ा लगता
किसी को सीधा सधा सा अक्षर
चश्मा नाक पे चढ़ा मोटा सा
भगा नहीं सकते बैठा मच्छर। .....
हम तो ऐसे ही हैं भैया
शून्य शान सी कीमत है
पढ़ कर पके नहीं अगर आप
अपने लिये यही गनीमत है
आपके हाथ मे छुपा जो बैठा
उस टमाटर की कीमत है । :))))
कीमत बस खास की है
सोच का काम तमाम
आज़ादी बकवास की है। ......
पढ़ना वढ्ना मैं न जानूँ
लढना भिड़ना जानूँ मैं
दोस्त कोई न नाता मेरा
कीमत पूरी मांगू मैं । .........
मैं मैं- मैं मैं
चें चें- पें पें
क्या लिख रहा हूँ
पता नहीं है
झेलने वाले झेल रहे हैं
क्या कहेंगे समझ नहीं है । ........
पेन टूट गया ,खो गयी डायरी
की बोर्ड की अब चढ़ी खुमारी
खटर पटर पर ब्लोगिंग श्लौगिंग
नशा है कोई या अजब बिमारी । .....
किसी को टेढ़ा टेढ़ा लगता
किसी को सीधा सधा सा अक्षर
चश्मा नाक पे चढ़ा मोटा सा
भगा नहीं सकते बैठा मच्छर। .....
हम तो ऐसे ही हैं भैया
शून्य शान सी कीमत है
पढ़ कर पके नहीं अगर आप
अपने लिये यही गनीमत है
आपके हाथ मे छुपा जो बैठा
उस टमाटर की कीमत है । :))))
गनीमत है इन्ही में आशावादी अर्थ ढूंढ लेते हैं... और फिर बकवास कुछ भी नहीं रहता :)
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteलिखते चलो........खुशी खुशी झेल रहे हैं.....
खटर-पटर जारी रहे....
सस्नेह.
अच्छा है इन शब्दों का भाव भी .. .मन को बहलाता हुआ :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ।।
बेहतरीन....
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,.
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
मन को छू लेने वाली रचना.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete☺
ReplyDeleteआपकी रचना हमेशा की तरह खुबसूरत है यशवंत जी ....
ReplyDeleteसमझने वाले अपने-अपने दिमागी स्तर से समझ गए ..... कोशिश करने वालो की हार नहीं होती .... छोटे-मोटे रोड़े तो आते ही रहते हैं .....
ReplyDeleteखुबसूरत रचना...बहुत बढ़िया
ReplyDeletehahaha...wah kya khoob likha hai...abhi tamatar ki jaruart nahin hai kyonki aapne behad achcha likha hai so hamara comment sweekar karen :)
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद- A post for all bloggers
at least मन को रम ही रहा है .......वो ही जरूरी भी है !
ReplyDelete"हम तो ऐसे ही हैं भैया
ReplyDeleteशून्य शान सी कीमत है
पढ़ कर पके नहीं अगर आप
अपने लिये यही गनीमत है"
गुदगुदाती सी रचना ! :)
हम तो नहीं पके भैया...:))
indira mukhopadhyay ✆
ReplyDelete10:11 AM (8 hours ago)
to me
Bahut majedar,net per yahi laabh hai haath me tamater hote hue bhi nahi phek sakte,phir keemat bhi yaad dila di aapne. Jaise hain vaise hi rahiye yahi to khasiyat hai
वाह ! हमेशा की तरह बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबढ़िया प्रयास ...
ReplyDeleteलिखते रहें ...
शुभकामनायें ...
जो भी है, बहुत अच्छा हैं...
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteha ha ha :-)
ReplyDeleteसच में ही गनीमत हैं .......
ReplyDeleteएक कवि ही है
ReplyDeleteजो हर गम में मुस्कुरा सकता है
और मुस्कुरवा भी सकता है
:):)
ReplyDeleteबेहतरीन रचना..
ReplyDelete