15 June 2012

क्षणिका

कहीं ये न हो 'निराश' कि
लौ के बुझ जाने पर
जश्न मनाने लगें
पर्दानशीं चिराग।

©यशवन्त माथुर©

FB Status-14/06/2012

'निराश'=मेरा उपनाम जिसे बहुत कम प्रयोग करता हूँ। 

16 comments:

  1. क्षणिका बहुत अच्छी..............
    उपनाम से वास्तविक नाम भला.....

    निराश न हो...यश पाओ सदा.............

    सस्नेह.

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  2. बहुत सुन्दर क्षणिका ...

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  3. इसका मतलब है कि‍ पर्दों में चि‍राग बुझे बैठे हैं ☺

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  4. निराश से यश ज्यादा सुन्दर है... अच्छी क्षणिका... शुभकामनायें

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  5. सुंदर क्षणिका

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  6. निराश'=मेरा उपनाम जिसे बहुत कम प्रयोग करता हूँ।
    आगे कभी भी प्रयोग नहीं कीजिएगा अनुरोध है .... !!
    क्षणिका दिल को चोट पहुचाई ....
    एक बार फिर से आपको सॉरी बोलना होगा ..... :O

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  7. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  8. बहुत खूब.उपनाम में निराशा क्यों...?

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  9. सुंदर कहा है.

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  10. उपनाम को भूल कर सिर्फ अपना नाम याद रखो ..... यशवंत हो और यशस्वी बनो -:)

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  11. 16 जून 1994,13जून 1995,25 जून 1995 को माँ दादी और दादा को खो देने का दर्द की झलकियाँ थी ...मुझे समझने में भूल हुई इसलिए अपने कमेन्ट के लिए माफी मांगना चाहती हूँ SORRY तो बहुत कम होगा .... !!

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    1. इतना परेशान न हुआ कीजिये आंटी :)
      आप सॉरी बोलेंगी तो कैसे काम चलेगा ?

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