कभी जैसा हुआ करता था जो
अब नहीं वो वैसा ही है
बदलते वक़्त में सब कुछ
अब तो ऐसा ही है
कभी चलते थे आना पाई
दौड़ता-चलता तो अब रुपया ही है
एक अरब के इस प्रदेश में
राजा वहीं पर रंक वही है
कभी 'इन्सान' हुआ करता था जो
दिखता तो अब भी वैसा ही है
दिल की सफेदी मे अब काला कुछ कुछ
मशीन में कार्बन जमता ही है
सब कुछ तो बस ऐसा ही है
सब कुछ तो बस चलता ही है
कल आज और कल की फितरत
अपना तो सर घूमता ही है।
~यशवन्त माथुर©
सुंदर रचना |
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआशा
आज का दौर ऐसा ही है ....
ReplyDeleteअच्छी रचना...
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(11-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
अब ऐसा ही है ....
ReplyDeleteआज पैसा ही सब कुछ है..भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteकभी 'इन्सान' हुआ करता था जो
ReplyDeleteदिखता तो अब भी वैसा ही है
दिल की सफेदी मे अब काला कुछ कुछ
मशीन में कार्बन जमता ही है .......सचमुच इंसान से ज़्यादा जटिल और उत्तम मशीन इस पृथ्वी पर नहीं है और इस के भीतर कार्बन जमना कोई आश्चर्यपूर्ण बात नहीं है ...सुन्दर रचना
http://boseaparna.blogspot.in/
bahut acchi rachna.....aaj ka yug aisa hi hai
ReplyDeleteयथार्थपरक कविता
ReplyDeleteवाह बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteशुभकामनायें
सब कुछ तो बस ऐसा ही है
ReplyDeleteसब कुछ तो बस चलता ही है......