05 October 2013

वह देवी नहीं

सड़क किनारे का मंदिर
सजा हुआ है
फूलों से
महका हुआ है
ख़ुशबुओं से
गूंज रहा है
पैरोडी भजनों से
हाज़िरी लगा रहे हैं जहां
लाल चुनरी ओढ़े
माता के भक्त
जय माता दी के
जयकारों के साथ।

उसी सड़क के
दूसरे किनारे
गंदगी के टापू पर बसी
झोपड़ी के भीतर
नन्ही उमा की
बुखार से तपती
देह 
सिमटी हुई है
एक साड़ी से
खुद को ढकती माँ के
आँचल में। 

उसकी झोपड़ी के
सामने से
अक्सर निकलते हैं
जुलूस ,पदयात्रा , जयकारे
जोशीले नारे
पर वह
नन्ही उमा !
सिर्फ गरीब की देह है
देवी या कन्या नहीं
जिसे महफूज रखे हैं
आस-पास भिनकते
मच्छरों और मक्खियों की
खून चूसती दुआएं।

~यशवन्त यश ©

10 comments:

  1. हमारे ही समाज की विडंबना ये भी...... मर्मस्पर्शी

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  2. बेहद कड़वा सच है.....
    :-(

    हम सभी पर सदा माँ की कृपा बनी रहे. नवरात्र शुभ हों !!!
    सस्नेह
    अनु

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  3. मार्मिक चित्रण..
    नवरात्री पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ :-)

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  4. nepal mein ek custom hai har saal ek ladki ko devi chun ne ka .. wo yaad aa gaya ki un deviyon ka baad mein kya hota hai ...

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  5. हमारे सम़ाज क़ा दूसरा रूप जों बेहद कड़वा है....
    गहण अभिव्यक्ति !!

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  6. "मनु को बताओ जाके रोती हैं बेटियॉ ।"

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  7. बहुत ही कड़वा सच ..नव रात्रि पर्व की शुभकामनाए..यशवंत.

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  8. bahut achha aur sachha likha hai

    shubhkamnayen

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  9. बहुत पीड़ा-दायक स्थिति है ये ...पर इस समाज को बनाने में हम सब ही कुछ तो दोषी हैं ही
    बहुत मार्मिक रचना

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