फिर शुरू हुआ
चलती साँसों का
एक नया सफर
उसी राह से
जिसकी लंबाई
हर पड़ाव पर
और बढ़ जाती है
मील के
इस पत्थर से
अगले पत्थर के
आने तक
बदलते रहते हैं
घड़ी की सूईयों के दौर
अर्श से फर्श तक
और फर्श से अर्श तक
अनगिनत ठौर
बदलते रहते हैं
दीवारों के रंग
इंसानी चेहरों के ढंग
मंज़िल की तलाश में
इन बिखरी
राहों के संग
समय की मार से
बे असर -बे खबर
फिर शुरू हुआ
चलती साँसों का
एक नया सफर ।
~यशवन्त यश©
owo06112014
चलती साँसों का
एक नया सफर
उसी राह से
जिसकी लंबाई
हर पड़ाव पर
और बढ़ जाती है
मील के
इस पत्थर से
अगले पत्थर के
आने तक
बदलते रहते हैं
घड़ी की सूईयों के दौर
अर्श से फर्श तक
और फर्श से अर्श तक
अनगिनत ठौर
बदलते रहते हैं
दीवारों के रंग
इंसानी चेहरों के ढंग
मंज़िल की तलाश में
इन बिखरी
राहों के संग
समय की मार से
बे असर -बे खबर
फिर शुरू हुआ
चलती साँसों का
एक नया सफर ।
~यशवन्त यश©
owo06112014
आपकी लिखी रचना शनिवार 22 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमुबारक हो यह नया सफर..जो नई मंजिलों की ओर ले जाये..
ReplyDeleteगहरे भाव लिये सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर, सार्थक, बेहतरीन रचना ! बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसुंदर सफर ।
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना !!!
ReplyDeleteBeautiful !
ReplyDeleteजीवन यही तो है ... साँसें चल्रती रहें ... मंजिलें मिलती रहें ...
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