08 November 2014

पगडंडियां .....(मृगतृष्णा जी की कविता)

कल शाम को फेसबुक पर मृगतृष्णा  जी की यह कविता पढ़ कर इसे अपने ब्लॉग पर साझा करने से खुद को न रोक सका। आप भी पढ़िये-

(1)
पगडंडियां मौके नहीं देतीं
संभलने के
पीछे से कुचले जाने का
ख़ौफ़ भी नहीं 


(2)
पगडंडियां दूर तक
नहीं जातीं
बस इनके क़िस्से
शेष रह जाते हैं

(3)
बड़े रास्तों तक पहुँचाकर
विधवा मांग सी
पीछे पड़ी रह जाती हैं
पगडंडियां

(4)
हरे हो गये मुसाफ़िर क़दम इनके
पीली दूब का श्रृंगार किये
आदिम रह जाती पगडंडियां

(5)
पहली रात के दर्द से घबराई
क़स्बाई लड़की लौट नहीं पायी घर
रात शहर उसने बदहवास खोजी
पगडंडियां

(6)
मेरे हिस्से की पगडण्डी
मिलती नहीं
घसियारिन के बाजूबंद सी
गुम हो गयीं पगडंडियाँ

---------मृगतृष्णा©

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर संकलित प्रस्तुति ..

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  2. वाकई पठनीय है यह रचना..बधाई !

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-11-2014) को "स्थापना दिवस उत्तराखण्ड का इतिहास" (चर्चा मंच-1792) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. निशब्द करती प्रस्तुति...अद्भुत

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  5. बहुत सुन्दर...

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  6. पगडंडियाँ भी कमाल करती हैं!

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  7. बहुत ही सुन्दर .......!!!

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  8. पगडंडियों को बाखूबी बयान किया ... जिसने भी किया ...

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