13 December 2014

वह सैनिक है

घर बार से
कहीं दूर
किसी रेगिस्तान की
रेतीली ज़मीन पर
या
बर्फ भरी
पर्वतों की
ऊंची चोटियों पर 
ठौर जमाए 
पीठ पर
भारी बोझ 
हाथ में हथियार
और निगाहों में
पैनापन लिए
वह
जूझता है 
मौसम की मार
और
दुश्मन के वार से
लेकिन
हिलता नहीं
शहादत के
अटल
दृढ़ संकल्प से  .....
उसका समर्पण
उसका तन
उसका मन
मातृ भूमि की
सरगम में 
डूबता उतराता हुआ
बहता चलता है
घर बार से
कहीं दूर
किसी
सीमा रेखा के भीतर 
हजारों हजार
दुआओं
और सलामों को
साथ लिए
जिसे गर्व होता है
खुद पर
वह
सैनिक है।

~यशवन्त यश©

9 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (14-12-2014) को "धैर्य रख मधुमास भी तो आस पास है" (चर्चा-1827) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बेहद सार्थक और प्रेरक रचना।

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  4. बहुत सुंदर एवं सार्थक.

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति......

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति......

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  7. जो देश के लिये जीते हैं---
    वही कुर्बान भी होते हैं.

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....

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  9. सैनिक की सुंदर परिभाषा..

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