यूं तो हैं यहाँ
बहुत से किस्से
सुनने सुनाने को बहुत से
सुनूँ क्या
और क्या कहूँ किससे ....?
नहीं दिखता यहाँ
कोई अपना सा
कुछ समझता सा
राह दिखाता सा
बस
खुद की परछाई से
अक्सर बातें करता सा....
मन की आज़ादी को
बांटते हुए खुद से
मुझे नहीं कहना
कुछ भी किसी से।
~यशवन्त यश©
बहुत से किस्से
सुनने सुनाने को बहुत से
सुनूँ क्या
और क्या कहूँ किससे ....?
नहीं दिखता यहाँ
कोई अपना सा
कुछ समझता सा
राह दिखाता सा
बस
खुद की परछाई से
अक्सर बातें करता सा....
मन की आज़ादी को
बांटते हुए खुद से
मुझे नहीं कहना
कुछ भी किसी से।
~यशवन्त यश©
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