19 February 2015

नहीं कहना कुछ भी किसी से

यूं तो हैं यहाँ
बहुत से किस्से
सुनने सुनाने को बहुत से
सुनूँ क्या
और क्या कहूँ किससे ....?

नहीं दिखता यहाँ
कोई अपना सा
कुछ समझता सा
राह दिखाता सा
बस 
खुद की परछाई से
अक्सर बातें करता सा....

मन की आज़ादी को
बांटते हुए खुद से
मुझे नहीं कहना
कुछ भी किसी से।

~यशवन्त यश©

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