02 March 2015

कुछ लोग-10

भीतर ही भीतर
अनकहे गम को
साथ लिये
चेहरे पर
मुस्कुराहट का
मुखौटा ओढ़े 
कुछ लोग
चखते हुए
जीवन के
कढ़वे -तीखे स्वाद
हर दिन 
बाँटते चलते हैं
मिठास भरे शब्द
और हर रात के
गहरे काले अँधेरों  में
अपनी चादर के भीतर
करवटें बदलते हुए
पोंछते रहते हैं
गीली आँखों को।

गैर
लेकिन अपने से 
ऐसे कुछ लोग
हो सकते हैं
संख्या में कम
या अधिक
मिल सकते हैं
अपने ही कहीं आस पास
कुछ न होते हुए भी
लगते हैं कुछ खास
फिर भी
बस गुमनाम रह कर
अनेकों दिलों में
लिखवा देते हैं
अपना नाम
कुछ लोग
जिनका पता भी
कुछ लोगों को ही
पता होता है। 

~यशवन्त यश©

No comments:

Post a Comment