यूं ही
मन के भीतर की
अनकही बातें
कागज़ के पन्नों से
कह कर
कर लेता हूँ शांत
कहीं धधकती
जज़्बातों की लपटों को
जो बेचैनी में
हो उठती हैं
और ज्यादा उग्र
जब नहीं होता कोई भी
कहीं आसपास
कुछ सुनने को
तब
लिखने को
चुनता हूँ
वही कुछ पुराने शब्द
जो दोहराते हैं
खुद को
हमेशा की तरह
नये अंदाज़ में
बिखर कर
छिटक कर
अर्थ
और अनर्थ का
तमाशा बनते हुए
चढ़ा देते हैं मुझे
औरों की नज़रों में
कहीं ऊपर
जबकि
शून्य के
धरातल पर भी
मैं कहीं
कुछ भी नहीं।
~यशवन्त यश©
मन के भीतर की
अनकही बातें
कागज़ के पन्नों से
कह कर
कर लेता हूँ शांत
कहीं धधकती
जज़्बातों की लपटों को
जो बेचैनी में
हो उठती हैं
और ज्यादा उग्र
जब नहीं होता कोई भी
कहीं आसपास
कुछ सुनने को
तब
लिखने को
चुनता हूँ
वही कुछ पुराने शब्द
जो दोहराते हैं
खुद को
हमेशा की तरह
नये अंदाज़ में
बिखर कर
छिटक कर
अर्थ
और अनर्थ का
तमाशा बनते हुए
चढ़ा देते हैं मुझे
औरों की नज़रों में
कहीं ऊपर
जबकि
शून्य के
धरातल पर भी
मैं कहीं
कुछ भी नहीं।
~यशवन्त यश©
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