साहित्य ‘सम्मान-युग’ में प्रवेश कर गया है। आजकल साहित्य को इतनी तरह से
और इतनी बार सम्मानित किया जाने लगा है कि साहित्य घर का ‘शो रूम’ बना जा
रहा है। अगर इस दशक और अगले दशक तक ऐसा ही चलता रहा, तो दिल्ली के सदर
बाजार, कनॉट प्लेस, करोलबाग, पंखा रोड, ग्रेटर कैलाश और मॉल्स आदि एकदम
सूने हो जाएंगे और उनके शो रूम लेखकों के घर उठकर आ जाएंगे। साहित्य एक दिन
किसी विराट मॉल का एक शो रूम बन जाएगा। यकीन न हो, तो आज आप किसी भी
साहित्यकार के ड्रॉइंग रूम को देख लें। वे छोटे-मोटे शो रूम बन चले हैं,
जिनमें साहित्य से ज्यादा उनको अनिवार्यतया प्रदान किए गए और उतने ही हर्ष
से उनके द्वारा लिए गए ढेर सारे प्रतीक चिन्ह सजे होते हैं।
जिस संख्या में और जिस-तिस द्वारा साहित्य को सम्मान दिए जाने लगे हैं, उससे एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि घर में साहित्यकार के लिए जगह ही न बचे और मुफ्त में मिले प्रतीक चिन्ह ही रह जाएं। ‘यशस्वी’ साहित्यकार को अपने घर का चबूतरा तक नसीब न हो। एक जमाना रहा, जब साहित्य में विचारधारा ने जरा-सा मुंह मारना शुरू किया ही था कि बहुत से साहित्यकार चिल्लाने लगे कि विचारधारा बाहरी चीज है। साहित्य में इससे बाहर की चीज का प्रवेश वर्जित है। कई लेखक लिखने से पहले लिखा करते थे: नो आइडियोलाजी! एक लेखक ने तो अपने दरवाजे के बाहर लिखकर टांग दिया था: कुत्ते व विचारधारा वालों का प्रवेश वर्जित! विचारधारा की एंट्री करवाने वालों और न करने देने वालों के बीच लंबी लड़ाई चली!
तब जरा-सी बात पर इतना घमासान रहा, लेकिन आज साहित्य अपने आप ही साहित्येतर से इस कदर घिरा जा रहा है और फिर भी किसी को नहीं सूझता कि कुछ कहे। लेकिन हम तो कहेंगे, क्योंकि हमी जानते हैं कि यह नया साहित्येतर साहित्य के लिए खतरा है। आप किसी भी साहित्यकार के घर को विजिट करके देखें। आपको वहां साहित्य कम दिखेगा और साहित्येतर सामान ज्यादा दिखेगा। हर लेखक के ड्रॉइंग रूम में उसके साहित्य की जगह घेरने वाले दो-चार से लेकर दर्जन तक प्रतीक-चिन्ह सजे मिलेंगे, जो बता रहे होंगे कि यह साहित्यकार जगह-जगह नाना भांति सम्मानित हो चुका है और आगे भी होगा।
प्रतीक चिन्ह पर मोहनजोदड़ो कालीन टाइप किसी की समझ में न आ सकने वाला कोई चिन्ह बना होगा, जिसके ऊपर या नीचे सुपर समादृत लेखक का नाम विनय पूर्वक लिखा होगा, लेखक के नाम के ऊपर ‘सम्मान देकर स्वयं सम्मानित हुई संस्था’ या संस्थान का नाम लिखा होगा, नीचे कोने में उसका या संस्था का मोबाइल नंबर और ई-मेल भी लिखा होगा! सभी मानते हैं कि साहित्यकार मार्गदर्शक, समाज का रक्षक, समाजहित में सदा लीन, मनीषी, शब्दों का ब्रह्म और आवश्यकता पड़ने पर मठ और गढ़ सब कुछ को तोड़ने-फोड़ने वाला और वर्गयुद्ध में कविता से सर्वहारा में जोश फूंकने वाला, ‘शक्ति का करो तुम आराधन’ कहकर जीत दिलाने वाला होता है।
इसीलिए हर सम्मानकर्ता लेखक को एक थैला, एक शॉल, एक-दो किलो की पत्रिकाएं/ स्मारिकाएं, एक राइटिंग पैड और एक बॉल पेन और कम से कम एक-दो किलो तक वजन का सामान दे डालता है, ताकि वह साहित्य वीर इस ‘प्रीति बोझ’ को अपने क्रांतिकारी कंधों पर प्रीति पूर्वक लटकाकर घर ले जा सके और घर को साहित्य का शो रूम बना सके।
साभार-livehindustan.com
जिस संख्या में और जिस-तिस द्वारा साहित्य को सम्मान दिए जाने लगे हैं, उससे एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि घर में साहित्यकार के लिए जगह ही न बचे और मुफ्त में मिले प्रतीक चिन्ह ही रह जाएं। ‘यशस्वी’ साहित्यकार को अपने घर का चबूतरा तक नसीब न हो। एक जमाना रहा, जब साहित्य में विचारधारा ने जरा-सा मुंह मारना शुरू किया ही था कि बहुत से साहित्यकार चिल्लाने लगे कि विचारधारा बाहरी चीज है। साहित्य में इससे बाहर की चीज का प्रवेश वर्जित है। कई लेखक लिखने से पहले लिखा करते थे: नो आइडियोलाजी! एक लेखक ने तो अपने दरवाजे के बाहर लिखकर टांग दिया था: कुत्ते व विचारधारा वालों का प्रवेश वर्जित! विचारधारा की एंट्री करवाने वालों और न करने देने वालों के बीच लंबी लड़ाई चली!
तब जरा-सी बात पर इतना घमासान रहा, लेकिन आज साहित्य अपने आप ही साहित्येतर से इस कदर घिरा जा रहा है और फिर भी किसी को नहीं सूझता कि कुछ कहे। लेकिन हम तो कहेंगे, क्योंकि हमी जानते हैं कि यह नया साहित्येतर साहित्य के लिए खतरा है। आप किसी भी साहित्यकार के घर को विजिट करके देखें। आपको वहां साहित्य कम दिखेगा और साहित्येतर सामान ज्यादा दिखेगा। हर लेखक के ड्रॉइंग रूम में उसके साहित्य की जगह घेरने वाले दो-चार से लेकर दर्जन तक प्रतीक-चिन्ह सजे मिलेंगे, जो बता रहे होंगे कि यह साहित्यकार जगह-जगह नाना भांति सम्मानित हो चुका है और आगे भी होगा।
प्रतीक चिन्ह पर मोहनजोदड़ो कालीन टाइप किसी की समझ में न आ सकने वाला कोई चिन्ह बना होगा, जिसके ऊपर या नीचे सुपर समादृत लेखक का नाम विनय पूर्वक लिखा होगा, लेखक के नाम के ऊपर ‘सम्मान देकर स्वयं सम्मानित हुई संस्था’ या संस्थान का नाम लिखा होगा, नीचे कोने में उसका या संस्था का मोबाइल नंबर और ई-मेल भी लिखा होगा! सभी मानते हैं कि साहित्यकार मार्गदर्शक, समाज का रक्षक, समाजहित में सदा लीन, मनीषी, शब्दों का ब्रह्म और आवश्यकता पड़ने पर मठ और गढ़ सब कुछ को तोड़ने-फोड़ने वाला और वर्गयुद्ध में कविता से सर्वहारा में जोश फूंकने वाला, ‘शक्ति का करो तुम आराधन’ कहकर जीत दिलाने वाला होता है।
इसीलिए हर सम्मानकर्ता लेखक को एक थैला, एक शॉल, एक-दो किलो की पत्रिकाएं/ स्मारिकाएं, एक राइटिंग पैड और एक बॉल पेन और कम से कम एक-दो किलो तक वजन का सामान दे डालता है, ताकि वह साहित्य वीर इस ‘प्रीति बोझ’ को अपने क्रांतिकारी कंधों पर प्रीति पूर्वक लटकाकर घर ले जा सके और घर को साहित्य का शो रूम बना सके।
साभार-livehindustan.com
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