19 May 2015

थैंक्यू अमेरिका, हिंदी को बचा लिया --सुधीश पचौरी

ब मुझे संतोष है कि हिंदी अगर अपने घर में मर भी गई, तो अमेरिका में जरूर बची रहेगी। देखना, एक दिन हम अमेरिका से करार करेंगे और नकद डॉलर भुगतान करके हिंदी इंपोर्ट किया करेंगे। वह हमें ‘पीएल फोर एट्टी’ की तरह राशन में मिला करेगी और इस तरह हमारी हिंदी,  हतक की सारी कोशिशों के बावजूद जिंदा बची रहेगी। यकीन नहीं है,  तो यह खबर अपनी आंखों से पढ़ लीजिए। एक दैनिक ने दो कॉलम में छापी है कि एक ‘फुलब्राइट’ स्कॉलर (विद्वान) को अमेरिका ने अपने एक विश्वविद्यालय में छात्रों को दो सेमेस्टर हिंदी पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया है। वे जल्द ही जाने वाले हैं और अमेरिकी छात्रों को हिंदी पढ़ाने वाले हैं।

वे पढ़ाएंगे। फिर वे हमें सिखाने आएंगे। हम दांतों तले उंगली दबाकर उनका आभार प्रकट करेंगे कि भगवन आपने बचा लिया! जिस तरह जर्मन पुत्र मैक्समूलर ने वेद की महिमा का गान कर वेद बचाए और देवभाषा के प्रति फिरंगियों की जिज्ञासा बढ़ी और उनकी जिज्ञासा देख इधर के लोग जिज्ञासु हुए और इस तरह देवभाषा को जीवनदान मिला, उसी तरह एक दिन हिंदी नामक देशजभाषा भी अमेरिकी मुख-कमलों के जरिए उचरेगी और बचेगी! सच ही कहा है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। इसीलिए कह रहा हूं कि एक दिन हम अमेरिका के एहसानमंद होंगे। उसे ‘थैंक्यू-थैंक्यू’ कहते न अघाएंगे। ‘फुलब्राइट’ का जादू ही कुछ ऐसा है कि उसे देखकर आंखें चौंधिया जाती हैं। एक तो ‘ब्राइट’, तिस पर एकदम ‘फुल।’

जरा ‘फुलब्राइट’ की हिंदी तो करके देखिए। आप चमत्कृत हो उठेंगे। ‘फुलब्राइट’ यानी पूरी तरह चमका हुआ, यानी समग्रत: तेजस्वी! आप जानते ही हैं कि हर ऐरा-गैरा, नत्थू खैरा फुलब्राइट नहीं हो सकता है। फुलब्राइट अगर हुआ जा सकता है, तो अंग्रेजी में ही हुआ जा सकता है। और अंग्रेजी के ‘वाया’ हिंदी में ‘आया’ जा सकता है। अंग्रेजी के वाया हिंदी में आने वालों की कमी नहीं, लेकिन किसी ने भी फुलब्राइट के तहत हिंदी नहीं पढ़ाई! ऐसे लोगों में अधिकतर ने अंग्रेजी पढ़ हिंदी में लिखा। कई ने तो हिंदी में अंग्रेजी का उल्था ही पेल दिया। कई अंग्रेजी से हिंदी को ‘संपन्न’ करते पाए गए, लेकिन माने ‘अनुवादक’ ही गए। कई लोगों ने आलोचना के अखाड़े खोल डाले।

अंग्रेजी पढ़कर हिंदी में घुसने का कारण यही रहा कि अंग्रेजों ने इनको जरा भी घास न डाली। कारण, इनकी अंग्रेजी ऐसी-वैसी ही रही, सो पिट-पिटाकर ‘हिंदी की सेवा’ करने लग गए, यानी ‘फिसल गए तो हर गंगे!’ हिंदी वाला मिजाज से उदार और बहुलतावादी ठहरा। उसने बिना वीजा-पासपोर्ट के इनकी अवैध एंट्री पर भी कोई ऐतराज नहीं किया। जिस तरह अंधों में काना राजा,  उसी तरह से हिंदी वालों के बीच ये राजा बन गए। फिर हिंदी में अंग्रेजी के एक्सपोर्टर-इंपोर्टर बन गए। इनकी देखा-देखी कई हिंदी वाले भी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट के ही काम में लगे रहे। एक ने तो बिना संदर्भ दिए अंग्रेजी में उपलब्ध रूपवादी माल हिंदी में तड़ दिया। और दूसरा अब भी छठे-छमासे अंग्रेजी से हिंदी में कुछ तड़ता रहता है। आज हिंदी वाला न ठीक से हिंदी लिख सकता है, न बोल सकता है। हिंदी मरणासन्न है। इसी कारण अब अमेरिका हिंदी में फुलब्राइट करने वाला है। इसी तरह हिंदी बचेगी और भविष्य में हमारे बच्चे भी फुलब्राइट से हिंदी ट्यूशन लिया करेंगे। आमीन!

-साभार-'हिंदुस्तान'

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