सोचता हूँ
जब समय आएगा
चले जाने का
तब क्या छोड़ पाऊँगा
यहाँ
अपने अनजान
कदमों के निशान ?
क्या छोड़ पाऊँगा
अपनी बातें
अपने एहसास
और अपनी
तीखी ज़ुबान ?
या
बस यूं ही
हवा में घुल कर
चंद आहों से धुल कर
दफन हो जाऊंगा
समय की
धूल भरी
किसी कब्र के भीतर
जिसके ऊपर
न कोई धूप जलेगी
न दीप
बस पतझड़ के
कुछ सूखे पत्ते
यहाँ-वहाँ बिखर कर
कभी कभी
पढ़ लेंगे
कहीं कोने में लिखा
मेरा नाम.....
और फिर
कहीं इकट्ठे हो कर
खरपतवार बन कर
जल कर
धुएँ में मिल कर
कहीं खो जाएंगे
खुद मेरे अपने
अस्तित्व की तरह।
~यशवन्त यश©
जब समय आएगा
चले जाने का
तब क्या छोड़ पाऊँगा
यहाँ
अपने अनजान
कदमों के निशान ?
क्या छोड़ पाऊँगा
अपनी बातें
अपने एहसास
और अपनी
तीखी ज़ुबान ?
या
बस यूं ही
हवा में घुल कर
चंद आहों से धुल कर
दफन हो जाऊंगा
समय की
धूल भरी
किसी कब्र के भीतर
जिसके ऊपर
न कोई धूप जलेगी
न दीप
बस पतझड़ के
कुछ सूखे पत्ते
यहाँ-वहाँ बिखर कर
कभी कभी
पढ़ लेंगे
कहीं कोने में लिखा
मेरा नाम.....
और फिर
कहीं इकट्ठे हो कर
खरपतवार बन कर
जल कर
धुएँ में मिल कर
कहीं खो जाएंगे
खुद मेरे अपने
अस्तित्व की तरह।
~यशवन्त यश©
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