26 June 2015

कहीं खो सी गयी है धरती

सपनों की बात हो गयी है
हरी भरी धरती
जो  बारिश में भीग कर
कभी मुस्कुरा देती थी
अब कंक्रीट के
बोझ से दब कर
हर बरसात
रो देती है
अपनी किस्मत पर
देखो!
कितनी गुमसुम सी
हो गयी है धरती
शायद
कहीं खो सी गयी है धरती।

~यशवन्त यश©

No comments:

Post a Comment