सपनों की बात हो गयी है
हरी भरी धरती
जो बारिश में भीग कर
कभी मुस्कुरा देती थी
अब कंक्रीट के
बोझ से दब कर
हर बरसात
रो देती है
अपनी किस्मत पर
देखो!
कितनी गुमसुम सी
हो गयी है धरती
शायद
कहीं खो सी गयी है धरती।
~यशवन्त यश©
हरी भरी धरती
जो बारिश में भीग कर
कभी मुस्कुरा देती थी
अब कंक्रीट के
बोझ से दब कर
हर बरसात
रो देती है
अपनी किस्मत पर
देखो!
कितनी गुमसुम सी
हो गयी है धरती
शायद
कहीं खो सी गयी है धरती।
~यशवन्त यश©
No comments:
Post a Comment