15 July 2015

नवनीत सिकेरा हाज़िर हो

ब भी कोर्ट आना होता है कोई न कोई अनुभव साथ जुड़ जाता है और भगवान पर विश्वास और बढ़ जाता है । अभी हाल में ही एक केस के सिलसिले में मुझे कोर्ट जाना पड़ा । मुझे उस केस में आरोपियों के विरुद्ध गवाही देनी थी । पूरा जोर लगा लिया दिमाग पर , पर याद ही नहीं आया की केस कौनसा था । अब कहाँ से याद आये 15 साल पुराना केस कहाँ से याद आये । अब आज के मोबाइल के ज़माने में 15 दिन पुरानी बात तक याद रहती नहीं 15 साल पुरानी कहाँ से कैसे याद रखूँ । अभी हाल मैं अपनी माँ से बात करनी थी मोबाइल की बैटरी ख़त्म थी , तब अहसास हुआ कि माँ का मोबाइल नंबर तक याद नहीं है यकीन मानिये बहुत छोभ हुआ । पर वकील साहब पूछ रहे थे कि बताइये पीड़ित के घर का दरवाजा उत्तर में था या दक्षिण में , तुरंत जेब में हाथ गया सोचा मोबाइल से देखूँ , तभी ख़याल आया भाई साहब कोर्ट का दरवाजा नहीं पूछ रहे थे । तभी किसी बात पर वकील साहब लोगों में बहस शुरू हो गयी और मैंने महसूस किया बहस काबिलियत या तथ्यों पर कम , आवाज़ की बुलंदी और अंग्रेजी पर ज्यादा आधारित थी । अक्सर महसूस किया है किसी डिबेट या बहस में किसी का पॉइंट कमजोर पड़ता है तो वह अंग्रेजी फेंकना शुरू कर देता है , की जैसे अंग्रेजी में पानी को वाटर कह दिया तो अब पानी शुद्ध हो गया पीलो मिनरल वाटर समझ के , भाई अंग्रेजी में बोल रहा है । पता नहीं कब मुक्ति मिलेगी इस मानसिक दासता से । लेकिन चलते चलते मैंने अपने मोबाइल से कोर्ट के दरवाजे की दिशा पता कर ली पता नहीं कब काम आ जाये। 

- नवनीत सिकेरा -

(लेखक उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं।)

~आदरणीय सिकेरा जी के आधिकारिक फेसबुक पेज से साभार~

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