19 May 2017

कुंठित मन के सवाल....

मेरा कुंठित मन
पूछता है
कुछ सवाल
कभी कभी
कि वह क्या है
जो मेरे पास नहीं है
पर जो दूसरों के पास है .....
वह क्या है
जिसके न होते हुए
मैं जलता हूँ
कुढ़ता हूँ
मन ही मन
रखता हूँ चाह
उसे पाने की
जिसे पाना
आसान नहीं
या मुमकिन नहीं ...
पर
जब सोचता हूँ जवाब
तो बनता नहीं
कुछ भी फिर
कहना या
समझना
क्योंकि
ऐसा बहुत कुछ है
जो मुझे जलाता है
जिसे पाने की चाह
मेरे भीतर
बीती कई सदियों से है
मैं
हर बार
एक नयी तमन्ना लिए
नये नये रूपों मे
लेता हूँ
नये नये जन्म
फिर भी
बस इसी तरह
अधूरा रह रह कर
जलता रहता हूँ
और शायद जलता रहूँगा
क्योंकि
अतृप्त
और कुंठित मन के
विरोधाभासी सवालों के जवाब
मेरे पास न हैं
न कभी होंगे।

-यश © 
19/मई/2017

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-05-2017) को
    "मुद्दा तीन तलाक का, बना नाक का बाल" (चर्चा अंक-2634)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. मन को कुछ भी मिल जाये वह तृप्त होता ही नहीं, मन का स्वभाव ही ऐसा है, मन के पार जाकर स्वयं की निजता का अनुभव जब तक नहीं होगा तब तक कुंठा से मुक्ति सम्भव नहीं..

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