07 April 2018

देहदान कर देना


जब नहीं हों मुझमें प्राण,
इतना एहसान कर देना
अंतिम इच्छा यही कि
मेरा देहदान कर देना।
जीते जी कुछ किया न मैंने
स्वार्थी जीवन बिताया है
यूं ही कटे दिन रात , समझ
कभी न कुछ भी आया है।
क्या होगा शमशान में जल कर
क्या होगा किसी कब्र में दब कर
चार कंधों पर ढोकर सबने
राम नाम ही गाया है।
मन तो व्यर्थ रहा ही मेरा
तन को नष्ट न होने देना
अंग हों जो भी काम के मेरे
जीवन उनसे किसी को देना ।
मृत शरीर अनमोल है इससे
नयी खोजें हो जाने देना
दान देह का सबसे बड़ा है
इसको व्यर्थ न जाने देना।

-यश ©

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-04-2018) को ) "अस्तित्व बचाना है" (चर्चा अंक-2935) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. यशवंत जी,कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आपने मेरे मन को बात कह दी हो। मेरी भी बहुत इच्छा हैं कि मेरा देहदान हो। बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  3. सुंदर विचार

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