अल्फ़ाज़ जब बहकते हैं
बेहया से बहते हैं
मौन धारा के साथ
राहें तय करते हैं।
मन के कहीं
किसी कोने में
बादलों की तरह
उमड़-घुमड़ कर
अनगिनत बातें
अपने भीतर लेकर
अल्फ़ाज़ जब बरसते हैं
बेहया से हँसते हैं
या आँखों की कोरों से
आँसू बन कर रिसते हैं।
अल्फ़ाज़ जब बहकते हैं
बेसुध से बिखरते हैं
कई शब्द रूपों के साथ
नए आकार लेते हैं।
-यश ©
16/10/2018
बेहया से बहते हैं
मौन धारा के साथ
राहें तय करते हैं।
मन के कहीं
किसी कोने में
बादलों की तरह
उमड़-घुमड़ कर
अनगिनत बातें
अपने भीतर लेकर
अल्फ़ाज़ जब बरसते हैं
बेहया से हँसते हैं
या आँखों की कोरों से
आँसू बन कर रिसते हैं।
अल्फ़ाज़ जब बहकते हैं
बेसुध से बिखरते हैं
कई शब्द रूपों के साथ
नए आकार लेते हैं।
-यश ©
16/10/2018
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