ये वक़्त
अपने साथ लाता है
कुछ स्याह
कुछ सफेद पन्ने
जिन पर रचा होता है
हमारा भूत
वर्तमान और भविष्य.....
हमारी अपेक्षाएँ
आशा
और निराशा।
ये पन्ने-
कभी धारा के साथ
बहते हैं
कभी
विपरीत चलने की
कोशिश में
लगाते हैं
अपना पूरा ज़ोर।
कहीं
किसी किनारे पर
ठिठक कर
रुकते हैं
सुस्ताते हैं
किसी हमराह को
कुछ राज़ बताते हैं
और बढ़ जाते हैं
अंतहीन आदि से
अनंत की ओर।
ये वक़्त
उसकी किताब
और पन्नों का
होश खोकर
चिन्दी-चिन्दी होकर
बिखरना
ऐसा लगता है
जैसे इन चलती साँसों को
मिल गया हो मुकाम
एक निर्बाध
यात्रा के बाद।
~यश©
13/10/2018
आशा ही जीवन है । होना भी चाहिये तभी जीवन है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रभावशाली लेखन
ReplyDelete