इससे पहले कि शमा बुझे
खुद ही बुझ जाऊँ मैं।
मन की सुनसान राहों पर
उड़ूँ और बिखर जाऊँ मैं।
अब तक तो ये न सोचा था
क्या फलसफे होंगे कल के।
बस आज में जीते हुए ही
बुनता सपने अपने मन के।
इससे पहले कि उलझन सुलझे
खुद को ही सुलझाऊँ मैं।
आखिर कब तक जलता रहूँगा
अरे अब तो बुझ जाऊँ मैं।
-यश©
12/दिसंबर/2018
खुद ही बुझ जाऊँ मैं।
मन की सुनसान राहों पर
उड़ूँ और बिखर जाऊँ मैं।
अब तक तो ये न सोचा था
क्या फलसफे होंगे कल के।
बस आज में जीते हुए ही
बुनता सपने अपने मन के।
इससे पहले कि उलझन सुलझे
खुद को ही सुलझाऊँ मैं।
आखिर कब तक जलता रहूँगा
अरे अब तो बुझ जाऊँ मैं।
-यश©
12/दिसंबर/2018
होता है पर समय जलना बुझना तय करता है।
ReplyDeleteभावपूर्ण..स्वयं को सुलझाना ही सर्वोत्तम है
ReplyDeleteअब तो प्रकाश ही बन गए हो बुझते और सुलगते..
ReplyDeleteअब बुझ ना सकोगे..प्रकाशमान हो गए बिखरते बिखरते..
सादर