26 March 2019

वक़्त के कत्लखाने में-16

कानों में गूँजता संगीत 
चाहे जिस भी राग 
धुन या साज से सजा हो 
अपने आप में 
मधुर होते हुए भी 
लगने लगता है
कभी कभी 
कर्कश  
क्योंकि 
एक खास स्थिति में 
मन 
जब बोझिल 
या उलझा सा होता है 
उसका कोई कोना 
कहीं खोया सा होता है 
तब सिर्फ 
शून्य सा होता है 
मन के हर तहखाने में 
जीवंतता का प्रमाण 
मांगने लगती है
परछाई भी 
वक़्त के 
इसी कत्लखाने में। 

-यश ©
26/03/2019

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