कोई दोस्त नहीं होता, दुश्मनों की बस्ती में
जीते हैं कुछ लोग ,बस अपनी ही मस्ती में।
उगते सूरज को सभी, यहाँ सलाम करते हैं
ढलने वाले से , रुखसती का काम करते हैं।
परछाई भी जहाँ, छोड़ देती है साथ निभाना
किसी का सगा नहीं, यह बदलता ज़माना।
मायने अब वो नहीं, जो कभी हुआ करते थे
कायदे अब वो नहीं, बंधे जिनसे रहा करते थे।
दौड़ होती है यहाँ, अक्सर नयी तकदीरों में।
जकड़ गयी है, दोस्ती स्वार्थ की जंजीरों में।
-यश ©
04/08/2019
जीते हैं कुछ लोग ,बस अपनी ही मस्ती में।
उगते सूरज को सभी, यहाँ सलाम करते हैं
ढलने वाले से , रुखसती का काम करते हैं।
परछाई भी जहाँ, छोड़ देती है साथ निभाना
किसी का सगा नहीं, यह बदलता ज़माना।
मायने अब वो नहीं, जो कभी हुआ करते थे
कायदे अब वो नहीं, बंधे जिनसे रहा करते थे।
दौड़ होती है यहाँ, अक्सर नयी तकदीरों में।
जकड़ गयी है, दोस्ती स्वार्थ की जंजीरों में।
-यश ©
04/08/2019
बहुत सुन्दर रचना
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