13 April 2020

क्या देख पा रहा हूं?

क्या देख पा रहा हूं भविष्य को?
या बस घूम रहा हूं
बेतरतीब ख्यालों की
अजीब सी दुनिया में
जहां शब्द महसूस तो होते हैं
लेकिन सुप्त रहते हैं
अचेतन मन के
किसी गुमनाम कोने में।
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-यशवन्त माथुर ©
13/04/20

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