झूठ और फरेब की
इस मायावी दुनिया में
सच सबसे अलग
कभी बहादुर
कभी बेबस सा दिखता है
भावनाओं के कहीं किसी कोने में
पड़ा हुआ
धिक्कारों
और बरसते पत्थरों के
अनगिनत वार झेलता हुआ
इस प्रतीक्षा में रहता है
कि कहीं
कोई उसे स्वीकार करके
बाकी दुनिया को
दिखा दे
उसके जीवित होने के प्रमाण।
सच निष्कपट होता है
शुद्ध होता है
नवजात शिशु की तरह
जिसे बोध नहीं होता
भावी तिलिस्मी जीवन का
और जब वह आगे बढ़ता है
देखता है कई ढंग
तो उसकी शुद्धता के ऊपर
जम जाते हैं कई रंग
जो बदल देते हैं
उसे हमेशा के लिए।
अमरत्व का वरदान लिए हुए
सच सिर्फ
सच ही रहता है
यह और बात है
कि वह भीतर ही होता है
विपरीत ही होता है
बहती धारा के
आदि और अंत के।
-यशवन्त माथुर ©
03/05/2020
ये सच है कि सच लाख परदों में छिपा हो वह एक दिन सबके सामने आता जरूर है
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
सच बेबस सा दिखता भले हो पर वह कभी बेबस नहीं होता,बदलता हुआ सा दिखता है पर कभी बदलता नहीं, उसे उजागर करने के लिए चाहिए कोई कबीर कोई मीरा, प्रभावशाली सुंदर रचना !
ReplyDeleteसार्थक विश्लेषण।
ReplyDeleteझूठ की पंचायत में सच को खामोश ही होना पड़ता है।