04 June 2021

तब और अब

इसके पहले कैसा था 
इसके पहले ऐसा था 
वैसा था, जैसा था 
थोड़ा था 
लेकिन पैसा था। 

इसके पहले थे 
अच्छे दिन
कटते नहीं थे 
यूँ गिन-गिन।   

इसके पहले दाना था 
दो वक़्त का खाना था 
खुली सड़क पर 
हर गरीब का 
यूँ ही आना-जाना था। 

लेकिन अब-

अब बदल गया है ज़माना 
रुक गया है आना-जाना 
बड़ी मुश्किल में पीना-खाना 
सुबह-शाम  चूल्हा जलाना।  

इंसान से महंगा हो गया तेल 
पास सभी हैं कोई ना फेल 
रुपये से डॉलर ऐंठ कर कहता 
'उसकी' करनी अब तू झेल। 

-यशवन्त माथुर©
04062021 

03 June 2021

एक तूफाँ हूँ......

हो जरूरत कभी, तो याद कर लेना,
मैं एक तूफाँ हूँ, यूँ ही आया करता हूँ।

दुआ सन्नाटा भी करता है, कि दूर ही रहूँ,
अक्सर हदों से आगे, गुजर जाया करता हूँ।

जो देखते हो तुम-
कहीं झुकी हुई घासें और गिरे हुए दरख़्त,
एकतरफा प्रेम में, ये वक़्त  जाया करता हूँ।

कुसूर मेरा नहीं, नामाकूल हवा का भी है,
जब टूटता है दिल, तो बरस जाया करता हूँ।


-यशवन्त माथुर©
02062021