हो जरूरत कभी, तो याद कर लेना,
मैं एक तूफाँ हूँ, यूँ ही आया करता हूँ।
दुआ सन्नाटा भी करता है, कि दूर ही रहूँ,
अक्सर हदों से आगे, गुजर जाया करता हूँ।
जो देखते हो तुम-
कहीं झुकी हुई घासें और गिरे हुए दरख़्त,
एकतरफा प्रेम में, ये वक़्त जाया करता हूँ।
कुसूर मेरा नहीं, नामाकूल हवा का भी है,
जब टूटता है दिल, तो बरस जाया करता हूँ।
02062021
वाह! एक से बढ़कर एक पंक्तियाँ, तूफ़ानों की हस्ती के आगे कौन ठहर सका है।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर शेर, नायाब रचना ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब यशवंत जी!
ReplyDelete