किससे कहूँ...?
कि गुजरते वक़्त के किस्सों में,
अपना हिस्सा मांगते-मांगते थक गया हूँ।
किससे कहूँ...?
कि अस्वीकृति को स्वीकार करते-करते,
जिस राह चला था उससे भटक गया हूँ।
किससे कहूँ...?
कि कभी गाँव था, अब शहर बनते-बनते
गहरी नींव के अंधेरे में उजाले को तरस गया हूँ।
किससे कहूँ...?
कि आदम हूँ तो देखने में
ज़माने ने जम के मारा, बेअदब हो गया हूँ।
29042023
अपनी-सी लगती है यह अभिव्यक्ति यशवंत जी। सम्भवतः प्रत्येक पीड़ित का स्वर कुछ ऐसा ही होता है।
ReplyDeleteअत्यन्त सुन्दर प्रस्तुति 🌟 हमेशा इसी तरह आगे बढ़ते रहो सफलता प्राप्त होगी thank you धन्यवाद
ReplyDeleteकिसी ने कहा है, कहो उसी से जो कहे न किसी से, माँगो उसी से जो दे दे ख़ुशी से
ReplyDelete