04 October 2010

मधुशाला

हाय क्यों छीन लिया तुमने
मुझ से मदिरा का प्याला
जिसको पीकर  क्षणिक भूलता
दुनिया का गड़बड़ झाला
एक पल की ये रंग रेलियाँ
फिर दो पल की तन्हाई है
तन्हाई में गले लगाती
मुझ को मेरी मधुशाला

(जो मेरे मन ने कहा.....)

9 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर ....

    मेरे ब्लॉग पर इस बार ....
    क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
    अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
    http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html

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  2. बहुत खूब...थोड़ा कम रही ये मधुशाला ..थोड़ी-सी और पढ़ने को मिलती तो मजा आ जाता

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  3. waqy me bahut khub shandar rachana

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  4. bबहुत खूब है आपकी मधुशाला। मेरा ये ब्लाग भी देखें
    www.veeranchalgatha.blogspot.com
    dhanyavaad|

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  5. bahut khoob.......hai aapki madhushaalaa....badhiya post.

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  6. आदरणीया वीना जी,
    सोच रहा हूँ मधुशाला को continue रखूं.मुझे नहीं पता कि 'बच्चन' जी का titil पर कॉपी राईट है या नहीं पर अगर मैंने अच्छा लिख लिया तो भविष्य में इसे प्रकाशित भी करवा सकता हूँ.

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  7. आदरणीया निर्मला जी,दिव्या जी,शेखर सुमन जी,शेखर कुमावत जी और अरविन्द जी,मेरी इस रचना को पसंद करने के लिए दिल से शुक्रिया.

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  8. कामयाब प्रयास
    बेहतर है

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