14 December 2010

वो

वो जिनके नाम कर रखी हैं
हमने अपनी साँसें
आज रूठ कर चले गए हैं
न जाने कहाँ
आवाज़
यूँ तो हम उनको
बहुत देर से दे रहे हैं
समझ कर बेवफा वो
रो रहे हैं
है मालूम उन्हें भी  कि
असल मोहब्बत तो वही हैं
फिर भी चाहते हैं
इज़हार हम ही करें
बेचैन  दिल है
और शायद दिमाग भी है
शायद हम ही अब अपनी
वफ़ा खो रहे हैं

6 comments:

  1. यही प्रेम होता है.... प्रेमपगी पंक्तियाँ .....

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  2. एक ही शब्द..बहुत खूब...चाहत में देर किस बात की...वफा खोने से पहले इजहार करिए...वर्ना शायरी ही रह जाएगी...सिर्फ एक सलाह है... वैसे आपकी रचना बहुत अच्छी है, प्रेम को व्यक्त करती...

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  3. यही तो है प्यार......दिल और दिमाग की जंग भी.

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  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!

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