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जब कभी बोझिल सा
महसूस करता हूँ खुद को
देखता हूँ ज़मीं पर
पड़ने वाली परछाई को
दो कदम चलता हूँ
कुछ आगे
कुछ पीछे
ये परछाई
मेरे साथ ही रहती है
मैं बातें करता हूँ
अपनी ही परछाई से
जो मन में आता है
कह देता हूँ
कभी कुछ अच्छा
कभी कुछ बुरा
जीवन की ऊंची नीची
राहों पर
सच्चे दोस्त की तरह
ये परछाई
मेरे साथ रहती है
हर सुख में
हर दुःख में
उन अपनों से बेहतर है
जो साथ छोड़ देते हैं
उगल देते हैं
एक दूसरे के दबे छुपे राज़
ये परछाई
सबसे अच्छी
साथी है
सबके साथ देती है.
जीवन के अंत तक
Even ur shadow follows u untill its shiny outside..andhere me parchhai bhi sath nahi deti.. lovely lines :)
ReplyDeletenice composition
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों में सहेज लिया आपने अपने मन की बात को........बधाई.
ReplyDelete'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकते हैं.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
अंधेरे में वह भी साथ छोड़ देती है। ईश्वर आपके जीवन में कभी अंधकार न लाए..न कभी ऐसा हो पर सच तो यही है कि अंधेरे में परछांई भी साथ छोड़ देती है..बस मन आपका साथ नहीं छोड़ता .....
ReplyDeleteखैर रचना तो बहुत अच्छा है...वैसे सबसे ज्यादा तो साथ निभाती ही है.....
परछाई का साथ होना बड़ा सुन्दर विम्ब है...!
ReplyDeleteसही कहा इनसे सच्चा और कोई साथी नहीं मिलता जिंदगी में.
ReplyDeletesundar blog hai ..
ReplyDeletesundar sankalan ..
बहुत खूबसूरती से बात कही है ...परछाईं से बातें करना ..अच्छा लगा
ReplyDeletebahut gahrayi se man ka manthan kiya hai aur sunder kavita ka srijan. badhayi.
ReplyDeleteबहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
ReplyDeleteसही कहा...
ReplyDeleteपरछाईं से वफादार और कोई साथी नहीं दुनिया में..
कौन छुडा पाया है पीछा अपनी इस परछाई से।
ReplyDelete---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
प्यारी है परछायी से प्रीत
ReplyDeleteसबसे प्यारी है ये मीत
सुन्दर लगा आपका गीत
पर छूट्ना तो है जग की रीत
जो साथ छोड जाये वो तो अपने हो ही नहीं सकते । सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteपरछाईं से बातें करना ..अच्छा लगा
ReplyDeleteअपनी ही परछाईं से बात करना अच्छा लगता है, पर अंधकार में यह भी तो साथ छोड़ देती है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
वो साथी से जहाँ बात करने में कहीं कोई दुविधा ना हों और हर बात हम कह लें बिना झिझक के ,ऐसी ही एक साथी परछाई.....सुंदर रचना ....
ReplyDeleteबाँसुरी की मोहक धुन ने सबकुछ बिसरा दिया.
ReplyDeleteअपनी परछाई ही साथ रहती है ..बेहद भावपूर्ण रचना....शुभकामनायें
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