16 April 2012

मैं देखता रहा :(

सरे आम
पिटते देखा उसे
मालिक के हाथों
चाय की दुकान पर
क़ुसूर सिर्फ इतना था
उन मासूम हाथों से
गरम चाय
छलक गयी थी
साहब के जूतों पर
और मैं
चाह कर भी 
बना रहा कायर
क्योंकि
उसकी नौकरी बचानी थी
उसे घर जाकर
माँ के हाथों मे
मजदूरी थमानी थी । 

36 comments:

  1. beautiful lines with deep feelings and emotions
    heart touching words and expression.

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  2. बहुत मार्मिक, परन्तु सत्य!!

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  3. बचपन में यदि किसी व्यक्ति की हमारे मन में कोई बुरी छवि बन जाये तो पूरी जिंदगी रहती है. उसका बुरा बर्ताव याद रहता है.

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  4. बहुत करुण..यथार्थ चित्रण

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  5. बहुत सच्चे मन से -
    झकझोरकर रख देने वाले विषय प्रस्तुत
    करते हैं यशवंत जी |
    आभार ||
    आपकी प्रेरणा से-


    मालिक तड़पे दर्द से, बाम मलाये हाथ |
    नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ |

    पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे |
    अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे |

    रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे |
    सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे ||

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर!
      आपकी भी तुरंती गजब की होती हैं।

      सादर

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  6. rachna achchi hai par drd bhri hai

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  7. बहुत कुछ ऐसा हो रहा है हमारे आस पास..........और हम चुप है..किसी ना किसी वजह से!!!!

    सार्थक कविता
    सस्नेह.

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  8. कई बार ऐसी स्थिति में इंसान चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, क्योंकि आज के हालात... काम न करे तो घर कैसे चलाये वो नन्हा... बेहद मार्मिक रचना, बधाई.

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  9. कमज़ोरों के साथ यही सुलूक होता है।
    http://commentsgarden.blogspot.in/

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  10. यथार्थ चित्रण....

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  11. very poignant .. Even I've seen some Hotel owners, beating their waiters and servants

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  12. सत्य को कहती संवेदनशील रचना

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  13. क्योंकि
    उसकी नौकरी बचानी थी
    उसे घर जाकर
    माँ के हाथों मे
    मजदूरी थमानी थी ।

    बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन संवेदनशील रचना,...

    यशवंत जी,..ऐसी हे क्या नारजगी जो आप पोस्ट पर नही आ रहे,...
    आइये स्वागत है,....

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  14. behad marmik post.

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  15. क्या खूब बयाँ की है रोज़मर्रा में होती हुई यह घटना!
    बहुत खूब.. पर कुछ कर नहीं सकते.. पापी पेट का सवाल है..

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  16. बहुत प्यारी रचना.

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  17. मन को छूती हुई शब्‍द रचना ।

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  18. कभी कभी कितना मजबूर हो जाता है इंसान ...भूख के हाथों ....चाहे अपनी हो या किसी और की ........

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  19. बाल श्रम अपराध है, लेकिन आज भी कितने बच्चे मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे हैं.

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  20. कल 18/04/2012 को आपके ब्‍लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... सपना अपने घर का ...

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  21. चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
    बढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||

    बुधवारीय चर्चा-मंच
    charchamanch.blogspot.com

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  22. Receive on mail

    indira mukhopadhyay ✆

    6:19 PM

    to me

    Dil chhoo gayi yah kavita. kai bar ham bas dekhte rahjate hai.

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  23. उसकी नौकरी बचानी थी
    उसे घर जाकर
    माँ के हाथों मे
    मजदूरी थमानी थी ।
    sachchi baat yahi to hota hai
    badhai
    rachana

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  24. एक सार्थक मार्मिक रचना

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  25. बहुत सुंदर शब्दों में एक गरीब के कंधे पर लदे बोझ को वर्णित किया है.

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  26. बेहद मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी रचना....

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