सरे आम
पिटते देखा उसे
मालिक के हाथों
चाय की दुकान पर
क़ुसूर सिर्फ इतना था
उन मासूम हाथों से
गरम चाय
छलक गयी थी
साहब के जूतों पर
और मैं
चाह कर भी
बना रहा कायर
क्योंकि
उसकी नौकरी बचानी थी
उसे घर जाकर
माँ के हाथों मे
मजदूरी थमानी थी ।
पिटते देखा उसे
मालिक के हाथों
चाय की दुकान पर
क़ुसूर सिर्फ इतना था
उन मासूम हाथों से
गरम चाय
छलक गयी थी
साहब के जूतों पर
और मैं
चाह कर भी
बना रहा कायर
क्योंकि
उसकी नौकरी बचानी थी
उसे घर जाकर
माँ के हाथों मे
मजदूरी थमानी थी ।
beautiful lines with deep feelings and emotions
ReplyDeleteheart touching words and expression.
बहुत मार्मिक, परन्तु सत्य!!
ReplyDeleteबचपन में यदि किसी व्यक्ति की हमारे मन में कोई बुरी छवि बन जाये तो पूरी जिंदगी रहती है. उसका बुरा बर्ताव याद रहता है.
ReplyDeleteबहुत करुण..यथार्थ चित्रण
ReplyDeleteबहुत सच्चे मन से -
ReplyDeleteझकझोरकर रख देने वाले विषय प्रस्तुत
करते हैं यशवंत जी |
आभार ||
आपकी प्रेरणा से-
मालिक तड़पे दर्द से, बाम मलाये हाथ |
नौकर मलता जा रहा, पीठ दर्द के साथ |
पीठ दर्द के साथ, रखे होंठों को भींचे |
अश्रु बहे चुपचाप, आग भट्ठी की सींचे |
रविकर माँ का ख्याल, यहाँ आजादी हड़पे |
सहता जुल्म बवाल, नहीं तो मालिक तड़पे ||
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
Deleteआपकी भी तुरंती गजब की होती हैं।
सादर
rachna achchi hai par drd bhri hai
ReplyDeleteबहुत कुछ ऐसा हो रहा है हमारे आस पास..........और हम चुप है..किसी ना किसी वजह से!!!!
ReplyDeleteसार्थक कविता
सस्नेह.
hmm trasadi hai ye ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.कानूनी रूप से अपराध के विरुद्ध उचित कार्यवाही
ReplyDeleteकई बार ऐसी स्थिति में इंसान चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता, क्योंकि आज के हालात... काम न करे तो घर कैसे चलाये वो नन्हा... बेहद मार्मिक रचना, बधाई.
ReplyDeleteकमज़ोरों के साथ यही सुलूक होता है।
ReplyDeletehttp://commentsgarden.blogspot.in/
यथार्थ चित्रण....
ReplyDeleteमार्मिक!
ReplyDeletevery poignant .. Even I've seen some Hotel owners, beating their waiters and servants
ReplyDeleteबेहद उम्दा पर साथ साथ उतनी ही मार्मिक ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - चुनिन्दा पोस्टें है जनाब ... दावा है बदहजमी के शिकार नहीं होंगे आप - ब्लॉग बुलेटिन
मार्मिक सत्य.
ReplyDeleteसत्य को कहती संवेदनशील रचना
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteक्योंकि
ReplyDeleteउसकी नौकरी बचानी थी
उसे घर जाकर
माँ के हाथों मे
मजदूरी थमानी थी ।
बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन संवेदनशील रचना,...
यशवंत जी,..ऐसी हे क्या नारजगी जो आप पोस्ट पर नही आ रहे,...
आइये स्वागत है,....
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
हृदयस्पर्शी.....
ReplyDeletebehad marmik post.
ReplyDeleteक्या खूब बयाँ की है रोज़मर्रा में होती हुई यह घटना!
ReplyDeleteबहुत खूब.. पर कुछ कर नहीं सकते.. पापी पेट का सवाल है..
बहुत प्यारी रचना.
ReplyDeleteमन को छूती हुई शब्द रचना ।
ReplyDeleteकभी कभी कितना मजबूर हो जाता है इंसान ...भूख के हाथों ....चाहे अपनी हो या किसी और की ........
ReplyDeleteबाल श्रम अपराध है, लेकिन आज भी कितने बच्चे मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे हैं.
ReplyDeleteकल 18/04/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... सपना अपने घर का ...
चरफर चर्चा चल रही, मचता मंच धमाल |
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति आपकी, करती यहाँ कमाल ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
Receive on mail
ReplyDeleteindira mukhopadhyay ✆
6:19 PM
to me
Dil chhoo gayi yah kavita. kai bar ham bas dekhte rahjate hai.
उसकी नौकरी बचानी थी
ReplyDeleteउसे घर जाकर
माँ के हाथों मे
मजदूरी थमानी थी ।
sachchi baat yahi to hota hai
badhai
rachana
एक सार्थक मार्मिक रचना
ReplyDeletebahut achchhi prastuti....
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्दों में एक गरीब के कंधे पर लदे बोझ को वर्णित किया है.
ReplyDeleteबेहद मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteTouching !!
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