02 April 2013

क्षणिका

बाहर की दुनिया में
तलाशता हुआ
उन बिखरे टुकड़ों को
उनकी तीखी
नोंकों की चुभन
अब महसूस कर सकता हूँ
मैं
खुद के ही भीतर।   
~यशवन्त माथुर©

11 comments:

  1. दर्द किसी का भी हो अपनेपन से महसूस करो तो अपने अन्दर गहरी हलचल उठने लगती है..यही तो संवेदनशील बने रहने के लिए जरुरी है इंसान के लिए ....
    बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete
  2. बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियाँ....

    ReplyDelete
  3. जीवन फूलों की सेज कहाँ....
    कांटें तो सहने ही होंगे........

    गहन भाव यशवंत !!
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर..!

    ReplyDelete
  5. सुन्दर प्रस्तुति... शुभकामनायें...

    ReplyDelete
  6. बेहद गहन !!!

    ReplyDelete

  7. बहुत सुंदर,अलंकारों का सुंदर प्रयोग

    ReplyDelete
  8. होता है ऐसा .. जब संवेदना हो मन में ...

    ReplyDelete
  9. kuchh shabdon mein dil ka gubar achhe dhang se prakat kiya hai.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete