आटे दाल का भाव न पूछो
भरे बाज़ार पहेली बूझो
गुम हो गया चिराग का जिन्न
अच्छे दिन अच्छे दिन।
आलू ,गोभी अकड़ दिखाता
मंडी जाना रास न आता
महंगाई के यह ऐसे दिन
अच्छे दिन अच्छे दिन।
देवियाँ अब भी लुटतीं पिटतीं
अपमान के हर पल को सहतीं
कहाँ कृष्ण ....यह कैसे दिन
अच्छे दिन अच्छे दिन।
दुखों मे जीता गरीब- किसान
सूखा-बाढ़ से परेशान
कम कीमत पर काटता दिन
अच्छे दिन -अच्छे दिन।
टैक्स बचा कर टाटा टाटा
एंटीलिया अंबानी बनाता
फुटपाथों पर छत के बिन
अच्छे दिन अच्छे दिन।
काला धन कहीं नज़र न आता
अब न कोई वापस लाता
नमो -नमो जप जप के गिन
अच्छे दिन अच्छे दिन ।
-यशवन्त माथुर ©
16102014
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.10.2014) को "नारी-शक्ति" (चर्चा अंक-1769)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब :)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteउम्मीदों के डोर ना छोड़ो
ReplyDeleteबुद्धि विवेक में साहस घोलो ,
होगा कुछ न ,तेरे जागे बिन
अच्छे दिन अच्छे दिन ......
सुंदर रचना .....
सुन्दर !
ReplyDeleteइश्क उसने किया .....
अब लगता है कहीं अच्छे दिन भी एक अबूझ पहेली बनकर न रह जाय!
ReplyDelete..बहुत सटीक सामयिक रचना
अब लगता है कहीं अच्छे दिन भी एक अबूझ पहेली बनकर न रह जाय!
ReplyDelete..बहुत सटीक सामयिक रचना
ReplyDeleteसबको मिलकर लाने होंगे
अच्छे दिन अच्छे दिन
बहुत अच्छा लिखा है...
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