21 September 2017

मैं देवी हूँ -5 (नवरात्रि विशेष)

यह समाज
यह आस-पड़ोस
यह रिश्ते-नाते
क्या सच में मेरे हैं
क्या सच में अपने हैं
या बस
यूं ही
अपने भीतर की
तमाम कुंठाओं का
प्रतिरूप
अपने स्मार्ट फोन की
स्क्रीन पर देखते हुए
तुम में से
कुछ लोग
करते रहोगे
छद्म गुणगान
जगरातों की
पैरोडी सुर-ताल पर।
मुझे पता है
तुम सबका असली रूप
मुझे मालूम है
तुम्हारे मन के
भीतर की एक-एक बात
एक-एक राज़
जो तुम्हारे चेहरे
और तुम्हारी नज़रें
खुद ही बता देती हैं
बस-ट्रेन और टेम्पो के भीतर
खुली सड़क पर
और हर
उस जगह
जहां मुझ पर
सवाल उठाने वाले
खुद ही बन जाते हैं
प्रश्न चिह्न
क्योंकि
मैं ही समिधा
और यज्ञ की वेदी हूँ
मैं देवी हूँ!

-यश©


इस  शृंखला की पूर्व सभी किश्तें इस लिंक पर क्लिक करके देखी जा सकती हैं

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-09-2017) को "खतरे में आज सारे तटबन्ध हो गये हैं" (चर्चा अंक 2735) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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