इस आभासी दुनिया से
नहीं होना चाहता अलग
यहाँ न धोखा है
न छल, न छद्म
जो है
खुला है
सबके सामने है
चाहे सफ़ेदपोशों का
काला सच हो
या किसी ईमान की कहानी
शब्दों की जुबानी
सब होता रहता है व्यक्त
दिल से बाहर आकर
दमित भावनाएं
लेते हुए आकार
त्वरित और तीक्ष्ण प्रतिक्रिया का
हर वार झेलते हुए
अपनी कुंठा को
धकेलते हुए
बढ़ जाती हैं आगे
और हमेशा के लिए
कहीं थम जाती हैं।
बस रह जाती हैं
कुछ अनसुनी
ठहरी हुई कहानियाँ
जिनमें रचा-बसा
वास्तविक दुनिया के चरित्र का
चीरहरण
अक्षर-अक्षर उघाड़ता दिखता है
संवेदनहीनता का हर चरण ।
इसलिए
अपनी मूर्च्छा से
नहीं होना चाहता हूँ अलग
क्योंकि जानता हूँ
आभासी दुनिया के पार भी
मेरी नियति
चिरनिद्रा ही है।
-यशवन्त माथुर ©
14/05/2020
जाए तो जाएं कहां
ReplyDeleteहरतरफ एक सी दुनिया
बहुत सही
ऐसी ही है आभासी दुनिया
ReplyDeleteचिरनिद्रा तो हर एक की नियति है, और फिर जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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