कुछ ऐसा हो
जो दिल दहलाए
धरती गगन समंदर
सब हिल जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
ठौर बदलते इस
बुरे दौर का
जलता दीपक
अब बुझ जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
कोई नहीं
भरोसे जैसा
धोखे का
निशाँ मिट जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
-यशवन्त माथुर ©
जो दिल दहलाए
धरती गगन समंदर
सब हिल जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
ठौर बदलते इस
बुरे दौर का
जलता दीपक
अब बुझ जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
कोई नहीं
भरोसे जैसा
धोखे का
निशाँ मिट जाए
चाहता हूँ
अब प्रलय आए।
-यशवन्त माथुर ©